________________ विमाग] 6 पञ्चनमस्कृतिदीपकसंदर्भ तद्विधाने पूर्वदिने (?), गत्वा तु जिनमन्दिरे। प्रतिमां श्रुतमभ्यर्च्य, कृत्वाऽनु गुरुपूजनम् // 32 // गुरोराज्ञां समादाय, गुरुहस्तं समुद्धरेत् (1) / मस्तके न्यस्य (1) सद्भाग्य, मत्वा गत्वान्तरे गृहे // 33 // वत्र मन्त्र(त्र) जपेद् यावत्, कार्यसिद्धिर्न संभवेत् / तावत् तत्र नियन्ता वा, याथातथ्येन योजयेत् // 34 // मन्त्रस्याख्या तु पश्चाङ्गं, नमस्कारस्तु पञ्चकम् / अनादिसिद्धमन्त्रोऽयं, न हि केनापि तत् कृतम् (स कृतः) // 35 // पूर्व येऽपि जिना यातास्ते वै यास्यन्ति यान्ति च / इत्यनेनैव हि मुक्त्यङ्गं, मूलमन्त्रमनादितः // 36 // जानुदने जले वाऽपि, पर्वते वाऽऽतपस्थिती। केनापि योगकार्येण, कार्य साध्य सुधीमता // 37 // एतन्मन्त्रं च शोध्यं नाऽकडमादिकचक्रतः। स्वयंभूततया शुद्धः, शोधनेन किमु स्फुटम् // 38 // विनौषाः प्रलयं यान्ति, शाकिनी-भूत-पन्नगाः। विषं निर्विषतां याति, ध्यायमाने सुपञ्चके // 39 // 15 पछीना (8) दिवसे जिनमंदिरमा जई जिनप्रतिमा अने श्रुतज्ञानने पूजीने पछी गुरुनी पूजा करवी / पछी गुरुनी आज्ञा लईने गुरुनो हाथ लेई पोताना मस्तक उपर मूकत्रो () / ते वसते पोते भाग्यशाळी छे एम मानीने गृहना एकान्त भागमा जई त्या कार्यनी सिद्धि न थाय त्यांसुधी मंत्रनो जाप करयो / ते समये त्यां ययार्थ रीतिए निपंता-उत्तरसाधकनी (.) पण योजना करवी // 32-33-34 // 20 पंचांग' ए मंत्रनुं नाम छे, तेमां पांच नमस्कार छ / आ मन्त्र अनादिसिद्ध छे, ते कोईए रचेल नथी // 35 // पूर्वे जे कोई जिनो मुक्तिमां गया, भविष्यमां जशे अने वर्तमानमां जाय छे, ते बधा आ पंचनमस्कार वडे ज / तेथी आ मूलमंत्र अनादि काळयी मुक्तिनुं अंग छे (1) // 36 // ढीचण सुधीना पाणीमां, पर्वत पर, तडकामां अथवा कोई पण योगकार्य (आसनादि) द्वारा आ 25 (मंत्र) ने बुद्धिशाळी पुरुषे साधनो जोइए // 37 // आ मंत्रने 'अकडम'* आदि चक्रथी शोधवो नहीं / केमके ए स्वयंभूत-आप मेळे उत्पन्न थयेलो. होवायी शुद्ध छे, तेथी स्पष्ट छे के शोधवानुं कोई प्रयोजन नथी // 38 // पंच परमेष्ठितुं ध्यान करतां विघ्नना समूहो, तेम ज शाकिनी, भूत अने पन्नग-सर्प वगेरेना उपसर्गो * नाश पामे छे अने विष निर्विष बनी जाय छे // 39 // .:30 .'अकडम' चक्र द्वारा पोताना माटे योग्य एवो मंत्र शोधी शकाय छ।