________________ [संस्कन . नमस्कार स्वाध्याय फलं देयं जिनेशस्य, पुरतो बीजपूरकम् / चु(चूतं चोचाम्र-कदलीमुखं षट्कर्तुषु क्रमात् // 25 // . कङ्कोलैला-लवङ्गादि-सर्वोषध्याभिषेचनम् / दधि-दुग्धेक्षु-सर्पिभिरभिषेको जिनस्य च // 26 // पश्चादुद्धृत्य तत्पीठान्मातकायन्त्रपूजनम् / कृत्वा पीठे प्रतिस्था(ठा)प्य, स्थिरां तां चिन्तयेदनु // 27 // चूर्णादिवासना पश्चाद्, पार्योवासना तथा / धान्यादिवासना चैव, फलवर्तिकवासना // 28 // पश्चाद् दिनत्रयं वनपरिधान तथा ततः। मुखोद्घाटनमेतस्यानन्तरं स्थाभिराधना (नीराजना) // 29 / / ... पश्चादाकरशुद्धिं च, कृत्वा मन्त्र जपेदनु / मूलमन्त्रमुपन्यस्तप्रतिज्ञो व्रतसंयुतः // 30 // सः पौषधी निराहारी, नियतो विजितेन्द्रियः / मनोवाक्कायसंशुद्धः, पञ्चमन्त्र जपेदनु // 31 // 10 . 15 जिनेश्वर प्रतिमा समक्ष फळमा-बीजोरे, आम्र, नारियल, केरी अने केळां वगेरे तेम ज सोपारी, इलायची, लवींग वगेरे छ ऋतुमा थनारा फळो क्रमशः मूकबा जोईए अने बधा प्रकारनी औषधिओथी अभिषेक करवो जोईए, (उपरांत) दही, दूध, शेरडी अने घीथी श्री जिनेश्वरनी प्रतिमानो अभिषेक करवो॥२५-२६॥ ए पछी ते पीठयी उपाडीने मातृकायन्त्रनुं पूजन करी, पीठा फरीथी स्थापना (प्रतिष्टा) 20 करवी, पछी ते प्रतिष्ठा स्थिर छे एम चिंतन करवू // 27 // पठी चूर्ण-वासक्षेप वगैरेनी वासना आप्या पछी पाणीनी अधोवासना (8) आपवी, (ते पछी) धान्य वगैरेनी वासना तथा फळ अने दीवानी वासना आपवी // 28 // ए पछी मातृकायन्त्र त्रण दिवस सुधी वनथी ढांकी देवं, वळी ते पछी तेनां मुखद् उद्घाटन . करवं अने पछी आरती करवी // 29 // 25 पछी कुंडनी शुद्धि करीने मंत्रजाप करतो.। पछी व्रत करीने मुळमंत्रना अमुक जपावि विशे प्रतिज्ञाबद्ध थर्बु // 30 // ते पछी पौषधवान, नियमवान, संयत, जितेंद्रिय अने मन-वचन-कायापी संशुद्ध एवा तेणे * पंचनमस्कारमंत्रनो जाप करवो // 31 //