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________________ विभाग] जिनपक्षरस्तोत्रम् राजद्वारे श्मशाने च, संग्रामे शत्रु-सङ्कटे / व्याघ्र-चौरामि-सादि-भूत-प्रेत-भयाश्रिते / / 19 // अंकाले मरणे प्राप्ते, दरियापत्समाश्रिते / . अपुत्रत्वे महादुःखे, मूर्खत्वे रोगपीडिते // 20 // डाकिनी-शाकिनीग्रस्ते, महाग्रहगणार्दिते / नद्युत्तारेऽध्ववैषम्ये, व्यसने चापदि स्मरेत् // 21 // प्रातरेव समुत्थाय, यः स्मरेजिनपञ्जरम् / तस्य किश्चिद् भयं नास्ति, लभते सुखसम्पदः // 22 // जिन-पञ्जरनामेदं, यः स्मरेदनुवासरम् / कमलप्रभैराजेन्द्र-श्रियं स लभते नरः // 23 // (इन्द्रवज्रावृत्तम्) प्रातः समुत्थाय पठेत् कृतज्ञो यः स्तोत्रमेतजिनपञ्जरस्य / आसादयेच्छ्रीकमलप्रभाख्यां लक्ष्मी मनोवाञ्छितपूरणाय // 24 // श्रीरुद्रपल्लीयवरेण्यगच्छे, देवप्रभाचार्यपदाब्जहंसः / वादीन्द्रचूडामणिरेष जैनो, जीयोद् गुरुः श्रीकमलप्रभाख्यः // 25 // राजद्वारमां, श्मशानमां, संग्राममां, शत्रुओथी आवेली आपत्तिमां, वाघ, चोर, अग्नि, सर्प प्रमुख हिंसक प्राणीओ तथा भूत प्रेतना भय वखते, अकाळ मृत्यु वखते, दारिद्यरूप आपत्तिना समयमां, पुत्र प्राप्ति माटे, महान् दुःख वखते, मूर्खपणामां, रोगनी पीडामां डाकिनी अने शाकिनीना वळगाड वखते, मोटा प्रहोना समुदायथी थता दुखमां, नदीने उतरती वखते, मार्गनी विषमतामां, कष्टमां अने आफतमां आ (जिनपंजर स्तोत्र) नुं स्मरण कर्तुं जोईए // 19-20-21 // 20 - प्रातःकाळमां ऊठीने जे 'जिन पंजर-स्तोत्र 'नुं स्मरण करे, तेने कोई जातनो भय थतो नथी। अने सुख-संपत्तिओ प्राप्त थाय छे // 22 // 'जिपंजर' नामना आ स्तोत्रनुं जे प्रतिदिन स्मरण करे छे, ते मनुष्य कमळ समान कान्तिवाळा चक्रवर्तीनी समृद्धिने (?) प्राप्त करे छे / (आ श्लोकमां आ स्तोत्रना कर्ता श्रीकमलप्रभसूरिए पोतानुं नाम पण सूचव्युं छे / ) // 23 // प्रातःकाळमां ऊठीने जे कृतज्ञ पुरुष आ 'जिनपंजर' नामना स्तोत्रने भणे ते मनना अभिलाषोने पूर्ण करनारी श्रीकमलप्रभा नामे प्रसिद्ध (1) एवी लक्ष्मीने प्राप्त करे // 24 // - श्रीरुद्रपल्लीय नामना श्रेष्ठ गच्छमां श्री देवप्रभाचार्यनां चरण-कमळने विषे हंस-समान अने जैनवादीन्द्रचूडामणि श्रीकमलप्रभ नामना सूरि जय पामो // 25 // 25 9. संपदम् 5130 6. कालम.S। 7. दारिद्येऽपि स / 8. °म्ये विषमे वा यदि स्मरन् / 10. भसूरीन्द्रः श्रेयांसि ल.s। 11. जीयादसौ श्री.s।
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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