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________________ विभाग] जिनपरस्तोत्रम् अर्हन्तं स्थापयेन्मूर्ति, सिद्ध चक्षुर्ललाटके। आचार्य श्रोत्रयोर्मध्ये, उपाध्यायं तु नासिके // 6 // साधुवृन्दं मुखस्याग्रे, मनःशुद्धिं विधाय च / सूर्य-चन्द्रनिरोधेनं, सुधीः सर्वार्थसिद्धये // 7 // दक्षिणे मदनद्वेषी, वामपार्श्वे स्थितो जिनः / अङ्गसन्धिषु सर्वज्ञः परमेष्ठी शिवङ्करः // 8 // पूर्वाशां च जिनो रक्षेदाग्नेयी विजितेन्द्रियः / दक्षिणाशां परं ब्रह्म, नैऋती च त्रिकालवित् // 9 // पश्चिमाशां जगन्नाथो, वायव्यां परमेश्वरः। उत्तरां तीर्थकृत्सर्वामी(त्सार्वई)वानेऽपि निरखनः // 10 // पातालं भगवानहभाकाशं पुरुषोत्तमः / रोहिणीप्रमुखा देव्यो, रक्षन्तु सकलं कुलम् // 11 // 10 बुद्धिमान् पुरुष, सर्वार्थनी सिद्धि माटे सूर्यनाडी अने चन्द्रनाडीने रोकीने अने मननी पवित्रता करीने अरिहंतने मस्तकमां, सिद्धने ललाट पर भ्रूमध्यमां, आचार्यने बने कानोनी मध्यमां, उपाध्यायने नासिका उपर अने साधुसमुदायने मुखना अग्र भाग उपर स्थापित करे // 6-7 // 15 श्री अरिहंत परमात्मा कामनाशकरूपे दक्षिण पार्श्वनुं, जिनरूपे वामपार्श्वनुं अने सर्वज्ञ, परमेष्ठी अने शिवंकर रूपे अंगोना सन्धि स्थानो रक्षण करो // 8 // श्री अरिहंत परमात्मा जिनेश्वररूपे पूर्व दिशानी रक्षा करो, विजितेन्द्रिय (इन्द्रियोने जीतनार) रूपे आनेयी विदिशानी रक्षा करो, परब्रह्मरूपे दक्षिण-दिशानी रक्षा करो अने त्रणे काळने जाणनार रूपे नैर्ऋती विदिशानी रक्षा करो / जगन्नाथरूपे पश्चिम दिशानी रक्षा करो, परमेश्वररूपे वायव्य विदिशानी 20 रक्षा करो, तीर्थंकर अने सार्वरूपे उत्तरदिशानी रक्षा करो अने निरंजनरूपे ईशान विदिशानी रक्षा करो, भगवान अरिहंतरूपे पातालनी रक्षा करो अने पुरुषोत्तमरूपे आकाशनी रक्षा करो / रोहिणी वगेरे देवीओ समग्र कुलनुं रक्षण करो // 9-10-11 // 1. मुखाग्रेऽपि, S | 2. न सर्वार्थ साधयेत् सुधीः / /
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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