________________ 5 . [62-17] श्रीकमलप्रभसूरिविरचितं __ जिनपञ्जरस्तोत्रम् ॐ ही श्री अर्ह अर्हद्भ्यो नमो नमः / ॐ ह्रीं श्री अर्ह सिद्धेभ्यो नमो नमः / ॐ ह्रीं श्री अहँ आचार्येभ्यो नमो नमः / ॐ ह्री श्री अर्ह उपाध्यायेभ्यो नमो नमः / ॐ ह्रीं श्री अर्ह गौतम-प्रमुख-सर्वसाधुभ्यो नमो नमः // 1 // एषः पञ्च-नमस्कारः, सर्व-पाप-क्षयकरः। मङ्गलानां च सर्वेषां, प्रथमं भवति मङ्गलम् // 2 // ॐ ह्री श्री जये विजये, अर्ह परमात्मने नमः / कमलप्रभस्वरीन्द्रो, भाषते जिनपञ्जरम् // 3 / / एकभक्तोपवासेन, त्रिकालं यः पठेदिदम् / मनोऽभिलषितं सर्व, फलं स लभते ध्रुवम् // 4 // भूशय्या-ब्रह्मचर्येण, क्रोध-लोभविवर्जितः। देवताग्रे पवित्रात्मा, षण्मासैर्लभते फलम् // 5 // अनुवाद आ.पंच-नमस्कार सर्व पापोनो नाश करनार छे अने सर्व मंगलोमां प्रथम-उत्कृष्ट मंगल छे.॥२॥ "ॐ ह्री श्री जये ! विजये! अर्ह परमात्मने नमः" ए मंत्र वडे परमात्माने नमस्कार करीने 20 श्रीकमलप्रभसूरि श्रीजिनपंजर नामना स्तोत्रने कहे छे // 3 // जे (मनुष्य) एकास' अथवा उपवास करीने त्रिकाल आ (स्तोत्र) ने भणे छे, ते निश्चय-पूर्वक सर्व मनोवांछित फलने प्राप्त करे छे // 4 // क्रोध अने लोभथी रहित एवो जे पवित्र पुरुष भूशय्या अने ब्रह्मचर्य वडे आ स्तोत्रनी रोज नियमित साधना करे छे ते छ महिनामा फळने पामे छे // 5 //