________________ [61-16] श्रीजिनप्रभसूरिरचितः पञ्चपरमेष्ठिनमस्कारस्तवः // (अनुष्टुप-वृत्तम्) स्वःश्रियं श्रीमदर्हन्तः, सिद्धाः सिद्धपुरीपदम् / आचार्याः पञ्चधाचारं, वाचका वाचनां वराम् // 1 // साधवः सिद्धि-साहाय्यं, वितन्वन्तु विवेकिनाम् / मङ्गलानां च सर्वेषां, प्रथमं भवति मङ्गलम् // 2 // अर्हमित्यक्षरं माया-बीजं च प्रणवाक्षरम् / एवं ज्ञानस्वरूपेण, ध्येयं ध्यायन्ति योगिनः॥३॥ हृत्पनं षोडशदलं, स्थापितं षोडशाक्षरम् / परमेष्ठिस्थितं बीजं, ध्यायेदक्षरदं मुदा // 4 // मन्त्राणामादिम मन्त्रं, तन्त्रं विनौषनिग्रहम् / ये स्मरन्ति सदैवैनं, ते भवन्ति 'जिनप्रभाः' // 5 // अनुवाद . विवेकी पुरुषोने श्री अरिहंतो स्वर्गनी लक्ष्मी, सिद्धो सिद्धपद, आचार्यो पांच प्रकारनो आचार उपाध्यायो श्रेष्ठ शास्त्रज्ञान अने साधुओ सिद्धिमा (मोक्षमार्गमा) मदद आपो। ए पांच परमेष्ठिओने करायेल नमस्कार सर्व मंगलोमा प्रथम मंगल छे // 1-2 // 'ॐ ही अर्ह' रूप ध्येय- योगीओ ज्ञानरूपे (?) ध्यान करे छे // 3 // षोडशदल हृदयकमळनी सोळ पांखडीओमां सोळ स्वरो अथवा 'अ-रि-ह-त-सि-द्ध-आ-य-रि-य-उ- 20 व-ज्झा-य-सा-हु' ए षोडशाक्षर अनुक्रमे स्थापवा / तेनी मध्यमां मोक्षदायक श्री परमेष्ठिबीज (ॐ अथवा ऽई) नुं प्रसन्नतापूर्वक ध्यान करवू / ए बीज सर्व मंत्रोमां प्रथम मंत्र के अने विघ्नसमूहनो नाश करनार महान तंत्र पण ए ज छे / जेओ एनुं सदैव ध्यान करे छे तेओ श्री जिनेश्वरनी कान्ति समान कान्तिवाळा थाय छे (अहीं 'जिनप्रभाः' पद वडे कर्ताए पोतानुं नाम पण श्लेषित कयु छे) // 4-5 // ... परिचय 25 .. आ स्तोत्रमा खरतरगच्छीय आचार्य श्रीजिनप्रभसूरिए पांच अनुष्टुप् श्लोकोमां पांच परमेष्ठी भगवंतोनी स्तुति करी छे। ए स्तोत्र पूना, भांडारकर रिसर्च इन्स्टिटयूटनी आदिनाथ महाप्रभावक स्तोत्र नामनी हस्तलिखित प्रति नं. 12508 मांथी प्राप्त थयु छ। ए स्तोत्रने अहीं अनुवाद साथे प्रकाशित क्युं छे॥