SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ म. 182 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत (शार्दूलविक्रीडित-वृत्तम् ) उच्चैर्योजनलक्षमानविदितो बिभ्रत् सुवर्णात्मतां, भव्यानन्दनमद्रशालमहिमा, रोचिष्णुचूलाश्चितः / अस्तु श्रीजि गेहभास्वररुचिस्थानं लसनिर्जरः, सोऽयं वः परमेष्ठिपञ्चकनमस्कारः सुमेरुः श्रिये // 32 // साम्नायावयवां जिनप्रभगुरुयाँ सूत्रयामासिवान् , दिव्यां 'पञ्च-नमस्कृति-स्तुतिमिमामानन्दनन्दन्मनाः / यस्यैषाश्चति कण्ठसीमनि सदा मुक्तालताविभ्रम, तं मुश्चन्त्यचिरेण विननिचयाः श्लिष्यन्ति च श्रीभराः // 33 // 10 जे लाखो माणसोमा अत्यन्त प्रसिद्ध छे, सुंदर वर्ण(अक्षर)मयताने धारण करनारो छे, भव्य पुरुषोने-मोक्षाभिलाषीओने आनंद आपनारो तथा भद्रपुरुषोना शाळागृह समान छे, देदीप्यमान चूलिकांथी सुशोभित छे, जे श्रीजिनेश्वर भगवानने विषे मनवाळा पुरुषोनी अतिशयवाळी रुचिनुं स्थान छे अने जेमां देवताओगें अधिष्ठान छे ते आ पंच-परमेष्ठि-नमस्काररूपी सुमेरु तमारा कल्याणने माटे थाओ। . ___ (आ श्लोकमां मेरु पर्वतना *रूपकथी नमस्कारमंत्रने वर्णव्यो छे) // 32 // 15 आनन्दयी उल्लसित मनवाळा 'श्रीजिनप्रभसूरिए' आम्नायना अंशोवाळी दिव्य आ 'पञ्च नमस्कृति' नामनी स्तुतिनी रचना करी छे; मोतीना हारनी समान शोभावाळी आ पंचनमस्कृति जेना कंठ-प्रदेशमा सदा शोमे छे तेने विघ्नोनी परंपरा शीघ्र छोडी दे छे अने लक्ष्मीना समूहो मेटे छे // 33 // परिचय 'आ स्तुतिनी त्रण प्रतिओ मळी हती; जेमांनी एक प्रति वडोदरा, श्रीहंसविजयजी शास्त्रसंग्रह20 जैनज्ञानमंदिरनी प्रति नं. 162. हती; बीजी मुंबई, रॉयल एशियाटिक सोसायटी प्रति नं. 123 हती; त्रीजी प्रति 'नमस्कारव्याख्यानटीका' ना पूर्वभागमां संग्रहरूपे आपेली हती, जेनी फोटोस्टेटिक कोपी अमारा संग्रहमा छे / ए त्रणे प्रतिओ ऊपरथी पाठ सुधारीने अहीं आपेल छे, छेवटे मुनि श्रीजिनविजयजीए छपावेलां फॉर्स ऊपरथी पाठमेदो लई, तेमां छपायेली शब्दस्थलटिप्पणीनो पण अहीं समावेश कर्यो छे। आ रीते मूल, शब्द-टिप्पणी, पाठांतरो अने अनुवाद साये आ स्तोत्रने अहीं प्रगट कर्यु छ। 25 आ स्तोत्रना कर्ता खरतरगच्छीय श्रीजिनप्रभसूरि, चौदमी सदीमा एक प्रतिभाशाली विद्वान् तरीके जैन साहित्यमा प्रसिद्धि पामेला छे / तेमणे स्तोत्रसाहित्यमां अनेक कृतिओं रची छे, तेमनी मांत्रिक तरीकेनी ख्याति पण तेमनां चरितवर्णनो अने कृतिओ नोंधे छे / श्रीजिनप्रभसूरिए नमस्कार विशे आ कृतिमां विशिष्ट माहिती आपी छे अने तेना आम्नायनुं सूचन पण कयुं छे / बत्रीश अनुष्टुप् छंदमां आ कृति छ / ___ 36. भद्राणां शालागृहं भवशाल / 37. जिनगा जिनविषया ईहा येषां ते, भास्वरातिशायिनी 30 रुचिरीप्सा तस्याः स्थानं विषयः। * मेरुना पक्षमां अर्थ : जे ऊंचाईमा एक लाख योजन प्रमाण प्रसिद्ध छे, सुवर्णमय शरीरने धारण करनार, उत्तम पुरुषोने आनंददायी एवा भद्रसाल वनथी युक्त छे, सुशोभित शिखरवाळो छे, देदीप्यमान कान्तिवाळा श्रीजिनालयोना सुंदर स्थानरूप छे, जेमां देवताओ क्रीडा करे छे, एवो ते सुमेरु पर्वत तमारा कल्याणने माटे थाओ॥३२॥ 35 38. विभ्रमा / /
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy