________________ 180 5 नमस्कार स्वाध्याय विपदामभिचारस्योपादानस्याखिलश्रियाम् / स्मर्ता नमस्कृतेः स्वर्गिवर्गेण वरिवस्यते // 19 // चतुर्दशानां पूर्वाणाम!ऽस्त्युपनिषत् परा / आद्या सकलविद्यानां, बीजानां प्रकृतिः परा // 20 // इदं पर्यंदनं पथ्यं, परलोकाध्वयायिनाम् / परमाऽत्रं नृणां मोहराजयुद्धाय सञ्जताम् // 21 // प्राणी प्राणप्रयाणस्य, क्षणे ध्यायन् नमस्क्रियाम् / लभते सुगैतीकाः, पाप्मा न स्तुतपूर्व्यपि // 22 // नमस्कृति कृपाँचित्तैः, श्रोत्रयोः प्राभृतीकृताः / स्वीकृत्य पुण्यसन्ध्यां च, तिर्यश्चोऽपि ययुर्दिवम् // 23 // त्रिदण्डिनं निगृह्याऽसियष्टिना 'श्रेष्ठिनन्दनः / नमस्कारस्य महसाऽसाधयत् स्वर्णपुरुषम् // 24 // विपत्तिओने दूर करवा माटे अभिचारमन्त्रप्रयोगरूप अने समप्र संपत्तिओना उपादान-मूळकारणरूप नमस्कारनुं स्मरण करनार देव-समूहवडे पूजाय छे // 19 // 15 आ (नमस्कार) चौद पूर्वाना परम साररूप छ, समस्त विद्याओनुं आदि कारण छे अने बीज-मंत्रोनी परा-उत्कृष्ट प्रकृति (जन्मभूमि) छे // 20 // ___ परलोकना मार्गे प्रयाण करनाराओने आ नमस्कार मार्गमां हितकारी एवँ उत्तम भातुं छे अने मोहराज साथे युद्ध करवाने सज्ज थता मनुष्योनुं अमोघ अस्त्र छे // 21 // . पहेलां जेणे स्मरण नथी कयु एवो पापी प्राणी पण मरण समये नमस्कार-मंत्रनुं ध्यान करतो 20 अनेक प्रकारनी सुगतिओने प्राप्त करे छे* // 22 // ___ कृपाळु चित्तवाळा (सज्जनो) वडे कानमां नमस्कारनी भेट करायेला एवा तिर्यंचो पण पवित्र के सन्ध्या (ध्यान) जेनी एवी नमस्कृतिने स्वीकारीने स्वर्गे गया // 23 // (शिवनामे) श्रेष्ठि-पुत्रे तलवारवडे त्रिदंडीनो निग्रह करीने नमस्कारना प्रभावथी सुवर्णपुरुषने सिद्ध कर्यो // 24 // 25 24. मेषैवोप° J / 25. इयं / / 26. पथ्योदनं H | 27. सुगतिं नैकान् पाप्मनः कृतपूर्व्यपि / 28. कृपावितैः / / 29. पुण्यसन्ध्यं च / / 30. °सा साधयन् स्वर्णपौरुषम् / * (पाठांतर मुजब-पूर्व जेणे अनेक पापो को होय एवो प्राणी पण मरणसमये नमस्कार- ध्यान करे तो सुगतिने पामे छे।)