________________ विभाग] पञ्चनमस्कृतिस्तुतिः विद्युअलामिभूपाल-व्याल-चौरारि-मारिजम् / भयं वश्चयते पञ्चनमस्कारं च संस्मरन् / / 16 // आराध्य विधिवत् पश्चनमस्कारमुदारधीः। लक्षजापेन पापेन, मुक्त आर्हन्त्यमश्नुते // 17 // ऐहिकं फलमीप्सूनामष्टकर्मप्रसौधिनी / मुक्त्यर्थिनां च स्यादेषैवाष्टकम्र्मनिषेधिनी // 18 // पंच-नमस्कारने सारी रीते स्मरण करनारो वीजळी, पाणी, अग्नि, राजा, हिंसक पशु, चोर, शत्रु अने मरकीथी उत्पन्न थता भयने दूर करे छे (अर्थात् 'मेइ जलं जलणं चिंतिय मित्तो वि पंचनवकारो। अरि-मारि-चोर-राउल-घोरुवसग्गं [अमुगस्स मम वा] पणासेइ // स्वाहा // ' 10 -आ मंत्रने चंदनकर्पूरवडे लीपेली भूमि पर मूकेली (8) एक वही उपर लखवो / तेनी नीचे अरिहंत वगेरे पांच टिक्किका-चिहो करीने पछी प्रथम नवकार- स्मरण करवू अने ते पछी 'थंमेइ०' गाथानो प्रतिदिन 108 वारनो अक्षतवडे जाप 21 दिवस करतां ए प्रकारना भयो नडता नथी / ) // 16 . उदार बुद्धिवाळो पुरुष विधिपूर्वक एक लाख जापथी पंच-नमस्कारनी आराधना करे तो पापथी मुक्त बनी तीर्थंकरपणाने पामे छे // 17 // ___15 आ (पंच नमस्कृति) सांसारिक फळोने चाहनाराओना आठ *कर्मोने सिद्ध करनारी अने मोक्षाभिलाषीओना (ज्ञानावरणादि) आठ कर्मोने नाश करनारी छ ज // 18 // सरखावो :- गुरुपंचकनामोत्था विद्या स्यात् षोडशाक्षरी / जपन् शतद्वयं तस्याश्चतुर्थस्यामुयात्फलम् // 39 // शतानि त्रीणि षड्वर्ण चत्वारि चतुरक्षरं / ' पंचवर्ण जपन् योगी चतुर्थफलमभते // 40 // प्रवृत्तिहेतुरेवैतदमीषां कथितं फलम्। फलं स्वर्गापवर्गौ तु वदन्ति परमार्थतः // 1 // -श्रीमद हेमचन्द्राचार्यविरचित योगशास्त्रे अष्टमः प्रकाशः। 19. ॐ यमेह य (जलं) जलणं चिंतियमित्तोवि पंचनवकारो। अरि-मारि-चोर-राउल-बोरुवसगं 25 [भमुगस्स मम वा] पणासेइ। स्वाहा // " एतस्कर्पूरचन्दनेनैकस्यां मौल्या बहिकापट्टे लिखित्वा अधष्टिकिकापञ्चकमईदादीनां कृत्वाऽऽदौ नमस्कारं स्मृत्वा, ततः "ॐ थंमेह" इत्यादि 108 तन्दुलैजपः कर्तव्यः दिनानि 21 यावत् / 20. "स्कारस्य सं | 21. मुक्तमाई' / 22. प्रसाधनी / / 23. शान्तिक-पौष्टिक-विद्वेषण-मोहनोच्चाटनमारण-वश्य-स्तम्भनाल्यानि। * स्तम्भ विद्वेषमावृष्टिं, पुष्टिं शान्तिप्रचालनम् / 30 वश्यं वधं च तं कुर्यात्, पूर्वाचामिमुखःक्रमात् // 2 // -विद्यानुशासन (हस्तलिखित) पृष्ठ 20. 1 स्तम्भन, 2 विद्वेषण, 3 आकर्षण, 4 पुष्टि, 5 शान्ति, 6 उच्चाटन, 7 वश्य अने 8 मारण आ आठ कर्म छ।