________________ विभाग] पञ्चनमस्कृतिस्तुतिः शिरस्त्रादिधिया धीरैः, स्वाङ्गदेशनिवेशिता / नमस्कृतेर्नवपदी, कटरे(१) वज्रपञ्जरः // 6 // वर्ण्यतां श्रीनमस्कारात्, कार्मणं किमतोऽधिकम् ? / यत्सम्प्रयोगतः पाशुरपि संवनयेजगत् // 7 // नमस्कारं स्तुमः सिद्धं, यत्पदस्पर्शपूतया / प्रत्याच्छादितसर्वाङ्गः, शान्तिमासादयेज्ज्वरी // 8 // नववी नमस्कृत्य, कृती प्रतिपदं जपेत / विधत्ते विविधाऽनिनविनाऽविग्रहनिग्रहम् // 9 // कर्णिकाष्टदलाढ्य हृत्पुण्डरीके निवेश्य यः। ध्यायेत् पञ्चनमस्कार, संसारं सन्तरेत्तराम् // 10 // . 10 धीर-पुरुषोए नमस्कारनां नव पदो (वज्रपंजर-स्तोत्रमा बताव्या मुजब) शिरस्त्राण वगेरेनी बुद्धिथी पोताना शरीरना जुदा जुदा भागोमां स्थापेलां छे / आनी आगळ वज्रनुं पांजरं पण शुं (शा कामर्नु) ? . (आ रीते पण न्यास करी शकायः-प्रथम पद 'नमो अरिहंताणं' बोलतां मस्तक परनी चोटलीना भाग उपर हाथ फेरववो, ए ज प्रमाणे-बीजुं पद बोलतां कपाळ उपर, त्रीजुं पद बोलतां जमणा काने, चोथु पद बोलतां खाडो-आंख उपर, पांचमुं पद बोलतां जमणा कानने, छटुं पद बोलतां जमणा 15 शंखे--ललाटना जमणा खुणामां अने बाकीना पदो वखते शेष विदिशाओमां हाथ फेरववो)॥ 6 // .. कहो, श्रीनमस्कार (मंत्र) थी वधीने बीजु कयुं मोर्ट कामण छे ? जेना विधिपूर्वक संयोगथी धूळ पण जगतने वश करी शके छे (अर्थात् नमस्कार-मंत्रना संयोगथी सिद्ध करेली धूळमां पण विश्वने वशीकरण करवानुं सामर्थ्य छे) // 7 // ते सिद्धनमस्कारनी अमे स्तुति करीए छीए (मंत्रोद्धार-"नमः सिद्धम् / ") के जे मंत्रना पद- 20 स्पर्शथी पवित्र थयेली कामळवडे (पोतानां) सर्व-शरीरने ढांकी देनार तांववाळो (माणस) शांतिने पामे छे। (अर्थात् सिद्ध नमस्कार गणीने ओढेला वस्त्रयी गमे तेवो ताव शांत थाय छे) // 8 // नववर्णी-'नमो लोए सव्व साहूणं' पदने नमस्कार करीने ए पदरूप मंत्रने पगले पगले (प्रतिक्षण) जपतो एवो धर्मी (पुण्यवान) पुरुष आवनारां विघ्नोने विग्रह (लडाई) विना सहेलाईथी रोकी शके छ (2) // 9 // कर्णिका सहित आठ पत्रवाळा हृदय-कमळमां पंचनमस्कार (ना नवपद) ने स्थापन करीने जे ध्यान करे ते संसारने शीतः तरी जाय छे // 10 // 25 6. प्रथमं पदं शिखायाम् , द्वितीय भाले, तृतीयं दक्षिणकर्णोपरि, चतुर्थमवटी, पञ्चमं सव्यश्रवणे दक्षिणशखे-इत्यादिदिक्षु। . 7. संयोगतः वालुकाऽपि वशीकुरुते। 8. नुमः / 9. सुधीः / / 10. स तरेत्तराम् / 30