________________ आलेखन पंचक ..... समयज्ञता, दृढचारित्र्य वगेरे गुणसंपदावाळा गुरुओना स्वहस्ताक्षररूपे पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध सूत्र अने तेनी साथे तेओश्रीनी प्रतिकृति-आ बन्ने एक सुंदर कलामय पट्टिका के जेमां अरिहंतदेवनी प्रतिकृति चित्रित होय तेमां . जो रजू करवामां आवे तो ग्रंथनी शोभामां षणी ज अभिवृद्धि थाय अने ग्रन्थ विशेष आदरणीय बने तथा ए प्रकारे चित्रमा देव, गुरु अने धर्मनो सुमेळ सधाय-अवो विचार आ ग्रंथना प्रयोजक शेठ श्री अमृतलालभाईना मनमां स्फुर्यों अने ते विचारने अमलमा मूकवाने शेठ श्री स्वयं पूज्य गुरुवयोंने मल्या अने विनंति करी। जे उपरथी आलेखन पंचक रजू करवामां आवेल छे। तेनो सामान्य परिचय नीचे मुजब छे:-.. . (16) सिद्धान्तमहोदधि पूज्यपाद आचार्य भगवंत श्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराज अने तेओश्रीना हस्ताक्षरमा 'पंचमंगल महासुयक्खंध सुत्तं' (पृ. 126 A) सकलागमरहस्यवेदी, कर्मसाहित्यना. परम अभ्यासी, परमशान्तविभूति वात्सल्यमति, करुणासिंध, स्वयं पंचाचारनुं सर्वांगसुंदर परिपालन करनारा अने अनेक भव्य आत्माओने तेमा जोडवानी अद्भत सिद्धिने वरेला, श्रीजिनशासनगगनदिवाकर, सुगृहीतनामधेय, प्रातःस्मरणीय परमाराध्यपाद आचार्य-शिरोमणि श्रीविजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजनी प्रतिकृति तथा तेओश्रीए कृपा करीने लखी आपेलो ‘पंचमंगलमहाश्रुतस्कन्ध सूत्रनो ते ज स्वरूपे पाठ / ए आचार्य भगवंतनी संस्था उपरनी महान् कृपाना कारणे प्रस्तुत ग्रंथने वर्तमानरूपमा लाववामा पू. मुनिवर्य श्री तत्त्वानंदविजयजीनी अमने धणी ज सारी सहाय मळी छ / (16) आगमप्रभाकर पू. मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी महाराज अने तेओश्रीना हस्ताक्षरमां 'पचमंगलमहासुयक्खंध सुत्तं' (पृ. 182 A) प्राचीन ज्ञानभण्डारोना महान् उद्धारक, संरक्षक अने संशोधक, जैनागमनिष्णात, समयज्ञ महापुरुष मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराजनी प्रतिकृति तथा तेओश्रीए कृपा करीने लखी आपेलो 'पंचमंगलमहासुयक्खंधसुतं' नो तेज स्वरूपे पाठ। (18) विद्वद्वर्य पू. पन्यासप्रवर श्रीधुरंधरविजयजी गणिवर अने तेओश्रीना हस्ताक्षरमां 'श्रीनवकार महामंत्रः' नो पाठ (पृ. 188 A) परम पूज्य आचार्य श्रीविजयामृतसूरीश्वरजी महाराजना प्रशिष्य संस्कृत:प्राकृतना प्रौढ विद्वान् तथा अनुष्ठानकुशल पू. पन्न्यासप्रवर श्रीधुरंधरविजयजी गणिवर्यनी प्रतिकृति तथा तेभोश्रीए कृपा करीने लखी आपेलो 'श्रीनवकार महामंत्र'नो ते ज स्वरूपे पाठ / (19) षट्दर्शननिष्णात पू. मुनिराज श्रीजंबूविजयजी महाराज भने तेओनीना हस्ताक्षरमा श्रीपञ्चपरमेष्ठिनमस्कारमहामन्त्रः' (पृ. 192 A) . प. पू. मुनिराज श्रीभुवनविजयान्तेवासी, भारतीय दर्शनोना प्रखर अभ्यासी, भोट भाषाना मर्मज्ञ, प्रखर मेधावी मुनिराज श्रीजंबूविजयजी महाराजनी प्रतिकृति तथा तेओश्रीए कृपा करीने लखी आपेलो 'श्रीपञ्चपरमेष्ठिनमस्कारमहामंत्र'नो ते ज स्वरूपे पाठ। (20) प. पू. पंन्यासप्रवर श्रीभानुविजयजी गणिवर्य्यना हस्ताक्षरमां 'सिरिपंचमंगलमहासुयक्खंधसुत्त' तथा पू. मुनिराज श्रीतत्त्वानंदविजयजी महाराजना हस्ताक्षरमां 'अरिहंत' मंत्रनो लेखित जाप (पृ. 198 A) प. पू. पन्यासजी महाराज श्री भानुविजयजी गणिवयें कृपा करीने लखी आपेलो 'सिरिपंचमंगलमहासुय-खंध सत्त' नो तेज स्वरूपे पाठ अने तेओश्रीना अन्तेवासी संस्कृत अने प्राकृतना परम उपासक, ध्यान विषयना अभ्यासी मुनिराज श्री तत्त्वानंदविजयजी महाराजे कृपा करीने लखी आपेलो 'अरिहंत' मन्त्रनो लेखित जाप।