________________ विभाग] 173 नमस्कारमाहात्म्यम् [अष्टमः प्रकाशः] अहंतामपि मान्यानां, परिक्षीणाष्ट-कर्मणाम् / सन्तः पञ्चदशभिदां, सिद्धानां न स्मरन्ति के ? // 1 // निरञ्जनाश्चिदानन्दरूपा रूपादि-वर्जिताः। स्वभाव-प्राप्त-लोकायाः, सिद्धानन्त-चतुष्टयाः // 2 // साधनन्त-स्थितिजुषो, गुणैकत्रिंशताऽन्विताः / परमेशाः परात्मानः, सिद्धा मे शरणं सदा // 3 // शरणं मे गणधराः, षट्त्रिंशद्गण-भूषिताः। ‘सर्व-सूत्रोपदेष्टारो, वाचकाः शरणं मम // 4 // लीना दशविधे धर्मे, सदा सामायिके स्थिराः। रत्नत्रय-धरा धीराः, शरणं मे सुसाधवः // 5 // भव-स्थिति-ध्वंसकृतां, शम्भूनामिव नान्तरम् / सूरि-वाचक-साधूनां, तत्त्वतो दृष्टमागमे // 6 // धर्मों में केवलज्ञानि-प्रणीतः शरणं परम् / चराचरस्य जगतो, य आधारः प्रकीर्तितः // 7 // आठमो प्रकाश - अरिहंतोने पण माननीय तथा जेमना आठे कर्मो क्षीण थई गयां छे, एवा पंदर प्रकारना सिद्धोनुं कया सत्पुरुषो स्मरण नथी करता ? // 1 // ... कर्मना लेप विनाना, चिदानंद स्वरूप, रूपादिथी रहित, * स्वभावथी ज लोकना अग्रभागने पामेला, सिद्ध थयेल छे अनन्त चतुष्टय जेमने एवा, सादि-अनन्त स्थितिवाळा, एकत्रीश गुणोवाळा, 20 परमेश्वररूप अने परमात्मस्वरूप श्री सिद्ध भगवंतो निरंतर मने शरण हो // 2-3 // नीश गुणो वडे शोभता श्री गणधर(आचार्य)भगवंतोनुं मने शरण हो। सर्व सूत्रोना उपदेशक श्री उपाध्याय भगवंतोनुं मने शरण हो // 4 // ... क्षमादि दश प्रकारना धर्ममां लीन थयेला, सामायिकमां सदा स्थिर, ज्ञानादिक त्रण रत्नने धारण करनारा तथा धीर एवा श्री साधु भगवंतोनुं मने शरण हो // 5 // 25 ___ आगमोमां जेम भवस्थितिनो ध्वंस करनारा श्री सिद्ध-भगवंतोमां परस्पर मेद जोवायो नथी, तेम भवस्थितिना ध्वंसमा उद्यमशील एवा आचार्य, उपाध्याय अने साधु वच्चे पण परमार्थथी मेद नथी॥६॥ जे चराचर जगतनो आधारभूत कहेलो छे एवो केवलि-भाषित धर्म मने परम शरण हो // 7 // 1. मेऽस्तु सा. ख. ग. हि.।