________________ 172 [संत नमस्कार स्वाध्याय अपि नाम सहस्रेण, मूढो हृष्टः स्वदैवते / बदरेणापि हि भवेत, शृगालस्य महो महान् // 41 // सिद्धानन्त-गुणत्वेनानन्तनाम्नो जिनेशितुः / निर्गुणत्वादनाम्नो वा, नाम-संख्यां करोतु कः 1 // 42 // रजस्तमोबहिःसत्त्वातीतस्य परमेष्ठिनः। प्रभावेण तमःपङ्के, विश्वमेतन्न मजति // 43 // मन्येन लोकनाथेन, लोकाग्रं गच्छताऽहेता। मुक्तं पापाजगत्त्रातुं, पुण्य(ण्यं)वल्लभमप्यहो! // 44 // पापं नष्टं भवारण्ये, समिति-प्रयतात् प्रभोः / तद्ध्वंसाय ततः पुण्यं, सर्व सैन्यमिवान्वगात् // 45 // पुण्य-पापविनिर्मुक्तस्तेनासौ भगवान् जिनः / लोकाग्रं सौधमारूढो, रमते मुक्ति-कान्तया // 46 // जिनो दाता जिनो भोक्ता, जिनः सर्वमिदं जगत् / जिनो जयति सर्वत्र, यो जिनः सोऽहमेव च // 47 // इति ध्यान-रसावेशात् , तन्मयीभावमीयुषः / परत्रेह च निर्विनं, वृणुते सकलाः श्रियः // 48 // इति सप्तमः प्रकाशः समाप्तः॥ 15 . पोताना देवना हजार नाम सांभळीने मूढ माणस हर्षित थाय छे, केमके शियाळने तो बोर __ मळवाथी पण मोटो उत्सव थाय छे // 41 // 20 श्री जिनेश्वरमां अनंत गुणो सिद्ध होवाथी तेमनां अनंत नामो छे, अथवा तो निर्गुण (सत्त्वादि गुण रहित) होवाथी तेमने नाम ज नथी, तो नामनी संख्या कोण करे // 42 // रजोगुण, तमोगुण अने बाह्य-सत्त्वगुणधी रहित एवा परमेष्ठीना प्रभावथी ज आ जगत् अज्ञानरूपी कादवमां डूबी जतुं नथी // 43 // ___ मने एम लागे छे के लोकना अग्रभागे जता त्रण लोकना नाथ श्री अरिहंत परमात्मा जगतना 25 जीवोने पापथी बचाववा माटे वल्लभ एवा पुण्यने पण अहीं ज मूकी गया // 44 // ___समितिमा प्रयत एवा 'प्रभु पासेथी पाप भवरूपी अरण्यमां नासी गयुं ! तेथी तेनो नाश करवा माटे समप्र पुण्य पण सैन्यनी जेम तेनी पाछळ पड्यु ! ए रीते पुण्य-पाप बंनेथी विनिर्मुक्त जिनेश्वर देव लोकाग्ररूपी महेलमां आरूढ थई मुक्ति रूपी कान्ता साथे क्रीडा करे छे // 45-46 // जिन दाता छे, जिन भोक्ता छे, आ सर्व जगत् जिन छे, जिन सर्वत्र जय पामे छे अने जे 30 जिन छे, ते ज हुँ छु / ए प्रमाणे ध्यानरसना आवेशथी पंचपरमेष्ठिमां तन्मयपणाने पामेला भव्य प्राणीओ आ लोक अने परलोकमां निर्विघ्नपणे सकल लक्ष्मीने पामे छे // 47-48 //