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________________ विभाग] नमस्कारमाहात्म्यम् 171 त्रैगुण्य-गोचरा संज्ञा, बुद्धशानादिषु स्थिता। या लोकोत्तर-सत्त्वोत्था, सा सर्वाऽपि परं जिने // 34 // रोहणानेरिवाऽऽदाय, जिनेन्द्रात्परमात्मनः / नानाभिधान-रत्नानि, विदग्धैर्व्यवहारिभिः // 35 // सुवर्णभूषणान्याशु, कृत्वा स्व-स्व-मतेष्वथ / तत्तद्देवेष्वाहितानि, कालात् तन्नामतामगुः // 36 // युग्मम् // यद्वाअमृतानि यथाऽब्दस्य, तडागादिषु पाततः। तजन्मानि जनाः प्राहुनामान्येवं तथाऽहेतः / / 37 // लोकाग्रमधिरूढस्य, निलीनानि हरादिषु। . तेषां सत्कानि गीयन्ते, लोकै प्रायो बहिर्मुखैः॥ 38 // युग्मम् // किञ्च तान्येव नामानि, विद्धि योगीन्द्र-वल्लभम् / यानि लोकोत्तरं सत्त्वं, ख्यापयन्तिं प्रमाणतः // 39 // संज्ञा रजस्तमःसवाभासोत्था अतिकोटयः / अनन्ते भववासेऽस्मिन्, मादृशामपि जज्ञिरे // 40 // . बुद्ध अने महादेव वगेरे लौकिक देवोने सत्त्व, रजस् अने तमस् ए त्रण गुणना विषयवार्छ 'जे ज्ञान छे .परन्तु लोकोत्तर सत्वथी उत्पन्न थवावाळू सर्वज्ञान तो मात्र जिनेश्वरोने विषे ज रहेल्लु छे // 34 // रोहणाचल पर्वतना जेवा जिनेश्वर परमात्मा पासेथी विविध नामरूपी रत्नो लईने पंडितोरूपी वेपारीओए शीघ्र सारा वर्णवाळा नामरूपी आभूषणो बनावी पोतपोताना मानेला हरिहरादिक देवोने 20 विषे स्थापन कर्या तेथी ते सारा वर्णवाळा नामो कालान्तरे ते ते देवोना नामथी प्रसिद्ध थया छे // 35-36 // - जेम वरसादनुं जळ ज तळाव वगेरेमा पड्युं होय छे, तो पण लोको कहे छे के 'आ पाणी तळावमा उत्पन्न थयुं छे' ते ज प्रमाणे लोकाग्र उपर आरूढ थयेला अरिहंतना ज पर्यायवाची नामो हरिहरादिकने विषे छे, छतां ते नामो हरिहरादिकनां छे एम अज्ञानी लोको बोले छे // 37-38 // 25 वळी, जे नामो प्रमाणथी लोकोत्तर सत्त्वने कहेनारां छे, ते ज नामो योगीन्द्रोने प्रिय एवा अरिहंतने जणावे छे, एम तुं जाण // 39 // सत्त्व, रजस् अने तमोगुणना आभासथी उत्पन्न थयेलां करोडोथी पण वधारे नामो तो मारा जेवाने पण आ अनंत संसारमा प्राप्त थयां छे॥ 40 // व
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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