________________ नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत देवतत्त्वे गुरुतत्त्वे, धर्मतत्त्वे स्थिरात्मनः। वालिनो वानरेन्द्रस्य, महनीयमहो! महः // 14 // सुलसाया महासत्या भूयासमवतारणम् / सम्भावयति कल्याण-वात्तायां त्रिजगद्गुरुः // 15 // श्रीवीरं वन्दितुं भावाच्चलितौ दर्दुरावपि। मृत्वा सौधर्मकल्पान्तर्जातौ शक्रसमौ सुरौ // 16 // हासा-प्रहासा-पतिराभियोग्य-दुष्कर्म-निविण्णमनाः सुरोऽपि / देवाधिदेव प्रतिमां क्षमायां, प्राकाशयत् स्वात्मविमोचनाय // 17 // जिनांह्रिसेवाहृत-पापतापः, त्रैलोक्य-कुक्षिम्भरि-सत्प्रतापः / श्रीचेटको नाम महाक्षमापः, सुरेन्द्र-चित्तेष्वपि वासमाप // 18 // . अष्टाहिका-पर्व सुपर्वनाथाः, कुर्वन्ति सर्वे जिनमन्दिरेषु / नित्येषु नन्दीश्वर-मुख्यतीर्था-लङ्कारभूतेषु भवाभिभूत्यै // 19 // 10 देव तत्त्व, गुरु तत्त्व अने धर्म तत्त्वमां स्थिर आशयवाळा वानर द्वीपना स्वामी वाली राजानुं तेज-पराक्रम खरेखर पूजवा लायक हतुं // 14 // 15 त्रण जगतना गुरु श्री महावीर परमात्माए पण सुख-शाताना समाचार कहेवराववामां जेणीने याद करी हती, ते महासती श्री सुलसानां हुं ओवारणां लऊ छु // 15 // श्री वीरप्रभने भावथी वंदन करवा आवता बे देडकांओ पण रस्तामां ज मरीने सौधर्मदेवलोकमां इंद्रसमान देवताओ थया [ सेडुक नामना ब्राह्मणनो जीव अने नंदमणियारनो जीव देडकाना भवमां श्री महावीर परमात्माने भावथी वंदन करवा जतां मार्गमां ज (श्रेणिक राजाना घोडाना पग तळे दबाईने) 20 मरण पामी प्रभु वंदननुं ध्यान होवाथी सौधर्मदेवलोकमां शक्रेन्द्रनो सामानिक देव थयो] // 16 // कुमारनंदी सोनीनो जीव मरीने देवलोकमां हासा अने प्रहासा नामनी देवीओनो पति थवा छतां पण आभियोगिक देवने योग्य हलकां कार्यो करवाथी मनमा अत्यन्त खेद पाम्यो हतो, तेथी तेणे पोताना आत्माने ते दुष्कर्मथी मुक्त करवा माटे देवाधिदेवनी प्रतिमा पृथ्वी ऊपर प्रगट करी हती // 17 // श्री चेटक (चेडा) नामना महाराजाए श्रीजिनेश्वरना चरणकमळनी सेवा वडे पोताना सर्व 25 पापना तापनो नाश कर्यो हतो, तेथी तेमनो सुंदर प्रताप त्रणे भुवनमा प्रसरी गयो हतो अने तेओ . इन्द्रोना हृदयोमां पण स्थान पाम्या हता // 18 // सर्व देवेन्द्रो संसारनो हास करवा माटे नंदीश्वरादिक तीर्थोना अलङ्कारसमा शाश्वता जिनमंदिरोमां अट्ठाई-महोत्सव करे छे // 19 // 1. भूयाः समवतारणम् क., भूयांसमवधारणं हि.। 2. वार्त्तया या जगद्गुरुम् क., वार्त्तया यां जगद्गुरुः ख.।