________________ विभाग] नमस्कारमाहात्म्यम् श्रूयते चरमाम्भोधौ, जिन-बिम्बाकृतस्तिमः। नमस्कृति-परो मीनो, जातस्मृतिदिवं ययौ // 20 // नृ-सुरासुर-साम्राज्यं, भुज्यते यदशङ्कितम् / जिन-पाद-प्रसादानां लीलायित-लवो हि सः // 21 // नृलोके चक्रवर्त्याद्याः, शक्राद्याः सुरसमनि / पाताले धरणेन्द्राधा जयन्ति जिन-भक्तितः // 22 // मुकुटीकृत-जैनाज्ञा, रुद्रा एकादशाऽप्यहो!। केचित्तीर्णास्तरिष्यन्ति, परे' संसार-सागरम् // 23 // वह्नि-ज्वाला इव जले, विषोर्मय इवाऽमृते / जिनसाम्ये विलीयन्ते, हरादीनां कथा-प्रथाः // 24 // तानि जैनेन्द्र-वृत्तानि, सम्यग् विमृशतां सताम् / अत्राप्यानन्दममानां, युक्तं मोक्षेऽपि न स्पृहा // 25 // 'यथा तोयेन शाम्यन्ति, तुषोऽनेन क्षुधो यथा / जिन-दर्शनमात्रेण, तथैकेन भवायः // 26 // ___वळी शास्त्रोमां संभळाय छे के स्वयम्भूरमण नामना छेल्ला समुद्रमां जिनबिंबना आकारवाळा 15 मत्स्यने जोई बीजा मत्स्यने जाति-स्मरण ज्ञान थयुं अने नमस्कार मंत्रनुं ध्यान करी त्यांथी मरीने देवलोकमां गयो // 20 // . मनुष्य, देव अने असुरोनुं स्वामीपणुं जे निःशंकपणे भोगवाय छे ते श्री जिनेश्वरभगवंतना * चरणोनी कृपानी लीलानो एक लेश मात्र छे // 21 // . मनुष्यलोकमां चक्रवर्ती वगेरे राजाओ, स्वर्गलोकमा इन्द्रादिदेवो अने पाताळ लोकमां धरणेन्द्र 20 वगेरे भुवनपतिना इन्द्रो जिनेश्वरनी भक्तिथी ज जयवंता वर्ते छे / / 22 // श्री जिनेश्वरनी आज्ञाने मुकुटनी जेम मस्तके धारण करीने अहो! अगियारे रुद्रोमांथी केटलाक ए ज भवमां मोक्षे गया छे अने बाकीना आगामी भवोमां मोक्षे जवाना छे // 23 // जेम पाणीमां अग्निनी ज्वाला नाश पामी जाय छे अने जेम अमृतने विषे विषनो प्रभाव नष्ट थई जाय छे, तेम श्री जिनेश्वरभगवंतनी समता-चरित्रनी वर्णनामां शंकर वगेरे देवोनी कथाओनो 25 विस्तार विलय पामे छे // 24 // श्री जिनेश्वरोना ते चरित्रोनुं सम्यक् प्रकारे चिंतन करनारा सत्पुरुषो आ संसारमां पण आनंदमन रहे छे अने तेथी खरेखर ! तेओने मोक्षमा पण स्पृहा रहेती नथी // 25 // जेम जल वडे तृषा शान्त थाय छे, तथा अन्न वडे क्षुधा शान्त थाय छे, तेम श्री जिनेश्वरना एक दर्शनमात्रथी ज संसारनी सर्व पीडाओ शान्त थई जाय छे-नाश पामे छे // 26 // 30 1. पारेसं० ख.घ.। -22