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________________ 166 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत [सप्तमः प्रकाशः] सदा नामाकृतिद्रव्य-भावैत्रैलोक्य-पावनाः / क्षेत्रे काले च सर्वत्र, शरणं मे जिनेश्वराः // 1 // तेऽतीताः केवलज्ञानि-प्रमुखा ऋषभादयः / वर्तमाना भविष्यन्तः, पद्मनाभादयो जिनाः // 2 // सीमान्धराद्या अर्हन्तो, विहरन्तोऽथ शाश्वताः / चन्द्रानन-वारिषेण-वर्द्धमानर्षभाच ते // 3 // संख्यातास्ते वर्तमानाः, अनन्तातीतभाविनः / सर्वेष्वषि विदेहेषु, भरतैरावतेषु च // 4 // ते केवलज्ञान-विकाश-भासुराः, निराकृताष्टादश-दोष-विप्लवाः / असंख्य-वास्तोष्पति-वन्दिताहयः, सत्तातिहार्यातिशयैः समाश्रिताः॥५॥ जगत्त्रयी-बोधिद-पश्च-संयुत-त्रिंशद्गुणालङ्कत-देशना-गिरः। अनुत्तर-स्वर्गिगणैः सदा स्मृताः, अनन्यदेयाक्षर-मागदायिनः // 6 // 15 सातमो प्रकाश __सर्व काळ अने सर्व क्षेत्रमा नाम, स्थापना, द्रव्य अने भाव वडे त्रण लोकने सदा पवित्र करनारा ___ श्री जिनेश्वर भगवंतो मने शरण हो // 1 // ते जिनेश्वरो अतीतकाळे श्री केवळज्ञानी स्वामी वगेरे थया हता, वर्तमानकाळे श्री ऋषभदेवस्वामी वगैरे थया छे अने आगामिकाळे श्री पद्मनाभ स्वामी वगेरे थवाना छे // 2 // ___ श्री सीमंधरस्वामी वगेरे वीस विहरमान तीर्थंकरो छे। श्री चन्दानन, श्री वारिषेण, श्री वर्धमान 20 अने श्री ऋषभ ए नामना चार शाश्वत तीर्थंकरो छे // 3 // सर्व विदेह, सर्व भरत अने सर्व ऐरावतने विषे वर्तमानकाळे संख्याता जिनेश्वरो होय छे, अने अतीत तथा अनागत काळने आश्रयीने अनन्ता जिनेश्वरो होय छे // 4 // ते सर्व तीर्थंकर भगवंतो केवळज्ञानना प्रकाशथी देदीप्यमान, अढार दोषोना उपद्रवोथी रहित, असंख्य इन्द्रोथी वंदित चरणकमळवाळा, उत्तम प्रकारना आठ प्रातिहार्य अने चोत्रीश अतिशयो वडे 25 शोभता, त्रण जगतना प्राणीओने समकित आपनार, पांत्रीश गुणोथी शोभता देशनाना वचनवाळा, अनुत्तरविमानमा रहेला देवो वडे सदा स्मरण करायेला अने बीजाओ न आपी शके तेवर मोक्षमार्गने आपनारा होय छे // 5-6 //
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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