________________ विभाग] नमस्कारमाहात्म्यम् अहो! दुर्लभ लाभो मे, ममाऽहो ! प्रियसङ्गमः। अहो! तत्व-प्रकाशो मे, सारमुष्टिरहो ! मम // 47 // अद्य कष्टानि नष्टानि, दुरितं दूरतो ययौ / प्राप्तं पारं भवाम्भोधेः, श्रुत्वा पञ्च-नमस्कृतिम् // 48 // प्रशमो देव-गुर्वाज्ञा-पालनं नियमस्तपः। अद्य मे सफलं जज्ञे', श्रुत-पञ्च-नमस्कृतेः // 49 // स्वर्णस्येवाग्नि-सम्पातो, दिष्टया मे विपदप्यभूत् / यल्लेभेऽद्य मयाऽनध्यं परमेष्ठिमयं महः // 50 // एवं शम-रसोल्लास-पूर्व श्रुत्वा नमस्कृतिम् / निहत्य क्लिष्टकर्माणि, सुधीः श्रयति सद्गतिम् // 51 // उत्पद्योत्तमदेवेषु, विपुलेषु कुलेष्वपि / अन्तर्भवाष्टकं सिद्धः, स्यान्नमस्कार-भक्तिभाक् // 52 // इति षष्ठः प्रकाशः समाप्तः // ... अहो ! आ पंचपरमेष्ठि-नमस्कार, श्रवण करवाथी मने दुर्लभ वस्तुनो लाभ थयो! अहो! मने प्रिय वस्तुनो समागम थयो ! अहो ! मने तत्त्वनो प्रकाश थयो अने अहो! मने सारभूत उत्तम वस्तुनुं 15 * सम्पूर्ण रहस्य प्राप्त थयुं छे // 47 // आ पंचपरमेष्ठि-नमस्कारना श्रवणथी आजे मारां कष्टो नाश पाम्यां, मारुं पाप दूरथी चाल्यु गयुं अने आजे हुं संसारसागरना पारने पाम्यो // 48 // पंचपरमेष्ठि-नमस्कार मंत्र- श्रवण करवाथी आजे मारो प्रशम, देव तथा गुरुनी आज्ञानुं पालन, . नियम अने तप ए सघळु य सफळ थयुं // 49 // 20 - अग्निनो संयोग जेम सुवर्णने निर्मळ करे छे, ते ज रीतिए आ मांदगीनी विपत्ति पण मारे कल्याणने माटे थई, कारण के आजे परमेष्ठि-स्वरूप अमूल्य तेज में प्राप्त कयु // 50 // - आप्रमाणे प्रशम-रसना उल्लासपूर्वक पंचपरमेष्ठि-नमस्कारनुं श्रवण करी अने क्लिष्ट कर्मने नाश करी बुद्धिमान पुरुष सद्गतिने पामे छे // 51 // __ नमस्कार मंत्रनी भावपूर्वक भक्ति करनार ते प्राणी त्यां (सद्गतिमा) उत्तम देवलोकोमा उत्पन्न 25 'थई त्यांथी च्यवी, श्रेष्ठ मनुष्यकुलोमां जन्म पामीने, आठ भवनी अंदर सिद्ध थाय छे // 52 // 1. जन्म, ख. ग. घ. हि.। 2. सन्तापो, ख. हि.। 3. महानर्थ्य ख. ग. हि. /