________________ 164 नमस्कार स्वाध्याय 'असिआउसे 'ति मन्त्रं, तन्नामाक्षराङ्कितम् / स्मरन्तो जन्तवोजन्ताः, मुच्यन्तेऽन्तक-बन्धनात् / / 40 // अर्हदरूपाचार्योपाध्याय-मुन्यादिमाक्षरैः / सन्धि-प्रयोग-संश्लिष्टैरोकारं वा विदुर्जिनाः // 41 // व्यक्ता मुक्तात्मनां मुक्तिर्मोह-स्तम्बरमाङ्कशः। प्रणीतः प्रणवः प्राज्ञैर्भवार्ति-च्छेद-कर्तरी // 42 // ओमिति ध्यायतां तत्त्वं, स्वर्गार्गलक-कुञ्चिकाम् / जीविते मरणे वापि, भुक्तिमुक्तिर्महात्मनाम् // 43 // सर्वथाऽप्यक्षमो दैवाद्, यद्वान्ते धर्म-बान्धवात् / शृण्वन् मन्त्रममुं चित्ते, धर्मात्मा भावयेदिति // 44 // अमृतैः किमहं सिक्तः, सर्वाङ्गं यदि वा कृतः। सर्वानन्दमयोऽकाण्डे, केनाऽप्यनघ-बन्धुना // 45 // परं पुण्यं परं श्रेयः, परं मङ्गलकारणम् / यदिदानीं श्रावितोऽहं, पञ्चनाथ-नमस्कृतिम् // 46 // 15 (हवे अपवाद-विधि कहे छे:-) जो शारीरिक मांदगीना कारणे पोते सम्पूर्ण नमस्कारनो उच्चार करवा समर्थ न होय तो ए ज पंच परमेष्ठीना पहेला पहेला अक्षरथी उत्पन्न थयेला असिआउसा' ए मंत्रनुं स्मरण करे, कारण के आ पांच अक्षरना स्मरणथी पण जीवो अनंत एवा मरणना बंधनथी मुक्त थया छे // 40 // जेमने कोई प्राणान्त मांदगीमां उपर कहेला पांच अक्षररूप मंत्र, स्मरण पण शक्य न होय तेमना माटे श्री जिनेश्वरोए अर्हत् (अरिहंत), अरूपी (सिद्ध), आचार्य, उपाध्याय अने मुनि ए पांच परमेष्ठिनां 20 प्रथम अक्षरोने व्याकरणना संधि-नियमो लगाडीने सिद्ध थयेल (अ+अ=आ, आ+आ आ, आ+उ=ओ, ओ+म्=) 'ॐ'कार कहेल छे, तेनुं स्मरण करईं। कारण के तेमां पण पांच परमेष्ठिओ आवी जाय छे॥४१॥ प्राज्ञ पुरुषोए कह्यु छे के आ 'ॐ'कार मुक्तात्माओनी साक्षात् मुक्ति, मोहरूपी हाथीने वश करनार अंकुश अने संसारनी पीडाने छेदनारी कातर छे // 42 // स्वर्गना दरवाजा उघाडवा माटे कुंची समान आ 'ॐ'काररूपी तत्त्व- ध्यान करनार महात्माओने 25 जीवे त्यांसुधी भोगो मळे छे अने मर्या पछी मुक्ति मळे छे // 43 // अथवा तो भाग्यवशात् मृत्यु समये सर्व प्रकारे आ ॐकारनुं स्मरण करवामां पण पोते अशक्त होय तो ते साधर्मिक बंधु पासेथी आ मंत्रनुं श्रवण करे अने ते वखते चित्तमां आ प्रमाणे भावना भावे // 44 // ___ शुं कोईक पुण्यशाळी बंधुए अकाळे मारा समग्र शरीरे अमृत छांटयु ? अथवा तो शुं हुं तेना वडे सम्पूर्ण आनन्द-स्वरूप करायो ! कारण के हमणां मने तेणे श्रेष्ठ पुण्यरूप, श्रेष्ठ कल्याणरूप अने मंगळना 30 श्रेष्ठ कारणरूप पंचपरमेष्ठि-नमस्कार मंत्र संभळाव्यो // 45-46 // 1. ०द्याक्ष ख. ग. घ. हि.। 2. ०न्तात् क.घ.। 3. शुक्ति० ख.ग. घ. हि.।