________________ विभाग] नमस्कारमाहात्म्यम् 159 शत्रुमित्रायते चित्रं, विषमप्यमृतायते / अशरण्याऽप्यरण्यानी, तस्य वासगृहायते // 3 // ग्रहाः सानुग्रहास्तस्य, तस्कराश्च यशस्कराः / समस्तं दुनिमित्ताद्यमपि स्वस्ति फलेग्रहिः // 4 // न मन्त्र-तन्त्र-यन्त्राधास्तं प्रति प्रभाविष्णवः / सर्वापि शाकिनी द्रोह-जननी जननी इव // 5 // व्यालास्तस्य मृणालन्ति, गुखापुखन्ति वह्नयः। मृगेन्द्रा मृगधूत्तेन्ति, मृगन्ति च मतङ्गजाः // 6 // तस्य रक्षोऽपि रक्षायै, भूतवर्गोऽपि भूतये / प्रेतोऽपि प्रीतये प्रायश्चेटत्वायैव चेटकः // 7 // धनाय तस्य प्रधनं, रोगो भोगाय जायते / विपत्तिरपि सम्पत्यै, सर्व दुःखं सुखायते // 8 // बन्धनैर्मुच्यते सर्वैः सचन्दनवजनः / श्रुत्वा धीरं ध्वनि पञ्च-नमस्कार-गरुत्मतः॥९॥ जल-स्थल-श्मशानाद्रि-दुर्गेष्वन्येष्वपि ध्रुवम् / . नमस्कारैकचित्तानामपायाः प्रोत्सवा इव // 10 // शरणरहित मोटुं जंगल पण रहेवा लायक घर जेवू बनी जाय छे, सर्वे ग्रहो तेने अनुकूळ थई जाय छे, चोरो यश आपनारा थाय छे, अनिष्टसूचक सर्व अपशकुनादि पण शुभ फळने आपनारा थाय छे, बीजाए प्रयोग करेला मंत्र, तंत्र अने यंत्रादिक तेनो पराभव करी शकता नथी, सर्व प्रकारनी शाकिनीओ पण मातानी जेम रक्षण करनारी थाय छे, सर्पो तेनी पासे कमळना नाळ जेवा थई जाय छे, अग्नि चणोठीना 20 ढगलारूप थाय छे, सिंहो शियाळ जेवा थाय छे, हाथीओ हरण जेवा थाय छे, राक्षस पण तेनुं रक्षण करे छे, भूतोनो समूह पण तेनी भूति (आबादी) ने माटे थाय छे, प्रेत पण. प्रायः करीने तेने प्रीति करनारो थाय छे, चेटक (व्यंतर) पण तेनो चेट (दास) बनी जाय छे, युद्ध तेने लाभ आपनाएं थाय छे, रोगो तेने भोग अपनारा थाय छे, विपत्ति पण तेने संपत्तिने माटे थाय छे अने सर्व प्रकारचें दुःख तेने सुख आपनारुं थाय छे // 2 थी 8 // 25 पंचनमस्काररूप गरुडनो गंभीर ध्वनि सांभळतां ज सर्पोथी चन्दनवृक्षनी जेम पुरुष सर्व बन्धनोथी मुक्त थाय छे // 9 // - जेओनुं चित्त नमस्कारमा एकान छे, तेओने जल, स्थल, श्मशान, पर्वत, दुर्ग अने तेवा बीजा पण स्थानोमां प्राप्त थतां कष्टो अवश्यमेव महोत्सवरूप बनी जाय छे // 10 //