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________________ 160 [संस्कृत 5 नमस्कार स्वाध्याय पुण्यानुबन्धिपुण्यो यः, परमेष्ठि-नमस्कृतिम् / यथाविधि ध्यायति सः, स्यान तिर्यङ् न नारकः // 11 // चक्रि-विष्णु-प्रतिविष्णु-बलाद्यैश्वर्य-सम्पदः। नमस्कार-प्रभावाब्धेस्तट-मुक्तादि-सन्निभाः // 12 // वश्य-विद्वेषण-क्षोभ-स्तम्भ-मोहादि-कर्मसु / यथाविधि प्रयुक्तोऽयं, मन्त्रः सिद्धि प्रयच्छति // 13 // उच्छेदं परविद्यानां, निमेषाद्यत् करोत्यसौ / क्षुद्रात्मनां परावृत्ति-वेधं च विधिना स्मृतः // 14 // भूर्भुवःस्वस्त्रयीरङ्गे, यः कोप्यतिशयः किल / / द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावापेक्षया चित्रकारकः // 15 // क्वचित् कथञ्चित् कस्यापि, श्रूयते दृश्यतेऽजिनः / स सर्वोऽपि नमस्काराऽऽराध-माहात्म्यसम्भवः // 16 // . तिर्यग्लोके चन्द्रमुख्याः, पाताले चमरादयः / सौधर्मादिषु शक्राद्यास्तदग्रेऽपि च ये सुराः // 17 // तेषां सर्वाः श्रियः पञ्च-परमेष्ठि-मरुत्तरोः। अङ्कुरा वा पल्लवा वा, कलिका वा सुमानि वा // 18 // , 10 पुण्यानुबंधि पुण्यवाळो जे पुरुष विधिपूर्वक पंचपरमेष्ठी-नमस्कार- ध्यान करे छे, ते तिर्यच् के नारक थतो नथी // 11 // चक्रवर्ती, वासुदेव, प्रतिवासुदेव अने बळदेव वगेरेना ऐश्वर्यनी संपदाओ नमस्कारना प्रभावरूपी 20 समुद्रना किनारे रहेला मुक्ताफल (मोती) वगेरे समान छे // 12 // _ विधिपूर्वक प्रयोग करायेल आ मंत्र वशीकरण, विद्वेषण, क्षोभ, स्तंभन अने मोहन वगेरे कार्योमां सिद्धिने आपनारो थाय छे // 13 // विधिपूर्वक स्मरण करेलो आ मंत्र अर्धनिमेषमात्रमा ज परप्रयुक्त मलिन विद्याओगें उच्छेदन करे छे अने क्षुद्र जीवोए करेल रूपादिकना परावर्तनने (?) विधी-विखेरी नांखे छे // 14 // 25 स्वर्ग, मृत्यु अने पाताळ ए त्रण भुवनरूपी रंगमण्डपने विषे द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भावने आश्रयीने जे कोई पण आश्चर्यकारक अतिशय कोई पण स्थळे, कोई पण प्रकारे, कोई पण प्राणीने थयेलो जोवामां के सांभळवामां आवे छे, ते सर्व नमस्कारमंत्रनी आराधनाना प्रभावथी ज उत्पन्न थयो छे, एम जाणवू // 15-16 // तिर्यग्लोकमां जे चन्द्रप्रमुख ज्योतिष देवताओ छे, पाताळ लोकमां चमर वगेरे इन्द्रो छे, ऊर्ध्वलोकमां सौधर्मादिदेवलोकने विषे जे शक्र वगेरे इन्द्रो छे अने तेनी उपर पण जे अहमिन्द्र वगेरे देवताओ 30 छे, तेओनी सर्वसमृद्धिओ पंचपरमेष्ठिरूप कल्पवृक्षना अंकुरा, पल्लवो, कळीओ के पुष्प समान छे // 17-18 //
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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