________________ नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत 'णं'-कारोऽत्र दिशत्येवं, त्रिरेखोऽम्बरशेखरः / विनय-श्रुत-शीलाद्या, महानन्दाय जाग्रति // 7 // सप्तरज्जूव॑लोकाध्वो-द्योत-दीप-महोज्ज्वला / सप्ताक्षरी चतुर्थी मे, ह्रियाद् व्यसन-सप्तकम् // 8 // इति चतुर्थः प्रकाशः समाप्तः॥ 5 10 [पञ्चमः प्रकाशः] न व्याधिन च दौविध्यं, न वियोगः प्रियैः समम् / न दुर्भगत्वं नोद्वेगः, साधूपास्तिकृतां नृणाम् // 1 // न चतुर्दा दुःखतमो, नराणामान्ध्य-हेतवे / साधुध्यानाऽमृतरसाञ्जनलिप्तमनोदृशाम् // 2 // मोक्तारः सर्वसङ्गानां, मोष्या नान्तर वैरिणाम् / मोदन्ते मुनयः काम, मोक्ष-लक्ष्मी-कटाक्षिताः // 3 // लोभ-द्रुम-नदीवेगाः, लोकोत्तर-चरित्रिणः। लोकोत्तमास्तृतीयास्ते, लोपं तन्वन्तु पाप्मनाम् // 4 // 15 णं-अक्षर त्रण रेखावाळो अने माथे अनुस्वारवाळो छे, ए एम जणावे छे के विनय, श्रुत अने शीलादि गुणो महानन्द-मोक्ष प्राप्ति माटे जाग्रत छे // 7 // सात रज्जू प्रमाण ऊर्ध्वलोकना मार्गने प्रकाश करवामां दीपकनी जे अत्यन्त उज्ज्वल आ चोथा 'नमो उवज्झायाणं' पदना सात अक्षरो मारा सात व्यसनोनो नाश करो // 8 // पांचमो प्रकाश 20 नथी ते मनुष्योने व्याधि, नथी दरिद्रता, नथी इष्ट वस्तुओनो वियोग, नथी दौर्भाग्य अने ___ नथी भय के त्रास, के जेओ साधुओनी उपासना-सेवा करनारा होय छे // 1 // साधुपदना ध्यानरूपी अमृतरसना अंजन वडे जेओनां मनरूपी नेत्रो अंजाया छे, ते मनुष्योने (चार गतिमां उत्पन्न थता ?) चार प्रकारना दुःखरूपी अंधकार अंधपणानुं कारण थतो नथी // 2 // मोक्तारः-सर्वसंगनो त्याग करनारा, राग-द्वेषादि आन्तर शत्रुओथी नहि लुटानारा अने मोक्ष25 लक्ष्मी वडे कटाक्षपूर्वक जोवायेला मुनिओ अत्यन्त आनंद पामे छे // 3 // लोभरूपी वृक्षने उखेडी नांखवा माटे नदीना वेग जेवा, लोकोत्तर चरित्रवाळा अने लोकोत्तम (अरिहंत, सिद्ध, साधु अने धर्म) वस्तुओमां तृतीय एवा मुनि भगवंतो अमारा पापोनो नाश करो // 4 //