________________ विभाग] नमस्कारमाहात्म्यम् [चतुर्थः प्रकाशः] न खण्ड्यते कुपाखण्डैर्न त्रिदण्ड्या विडम्ब्यते / न दण्ड्यते चण्डिमाद्यै-रुपाध्यायं श्रयन् सुधीः // 1 // मोमा-श्री-ही-धृति-बायो, मोचलन्तु तदङ्गतः। उपास्ते य उपाध्याय, सिद्धादेशो महानिति // 2 // उदयो मूर्तिमान सम्यग्-दृष्टीनामुत्सवो धियाम् / उत्तमानां य उत्साहः, उपाध्यायः स उच्यते // 3 // वचो वपुर्वयो वक्षों, वर्जितं वधवार्तया। वशगं वेदविद्यानां, उपाध्यायमहेशितुः // 4 // ज्झाकारो वाचक-श्लोक-भम्भाया व्यानशे दिशः। अनित्यैकान्तदृग्नित्यैकान्तदृग्जयजन्मनः // 5 // या सप्तनय-वैदग्धी, या परागम-चातुरी। या द्वादशाङ्गी-सूत्राप्तिः, सोपाध्यायाहते कुतः 1 // 6 // चोथो प्रकाश नथी खंडन करातो ते सुज्ञपुरुष कुपाखंडीओ वडे, नथी विडंबना पमाडातो मन, वचन अने 15 कायाना दंड वडे, तथा नथी दंडातो क्रोधादि कषायो वडे, जे उपाध्यायनो आश्रय करे छे // 1 // . . मोमा ('मा' एटले लक्ष्मी अने 'उमा' एटले शांति, कांति, कीर्ति), श्री, ह्री, धृति अने ब्राह्मी ए देवीओ, जेओ उपाध्यायनी उपासना करे छे, तेओना शरीरमांथी दूर न जाओ, ए प्रमाणे योगसिद्ध महर्षिओनो आदेश छे // 2 // उपाध्याय ते कहेवाय छे के जे सम्यग्दृष्टि आत्माओ माटे मूर्तिमान उदयरूप छे, बुद्धिमान 20 पुरुषोने माटे साक्षात् उत्सव छे अने उत्तम जनोने माटे प्रत्यक्ष उत्साह छे // 3 // . वचन, वपु-शरीर, वय अने वक्ष-हृदय-उपाध्यायनी ए चार वस्तुओ वधनी वार्ताथी रहित तथा आगमविद्याने वश छे / (आगमोक्त योगसाधनाथी उपाध्यायनी ए चार वस्तुओनो प्रभाव सर्व पर पडे छे, जे प्रभावने कोई पण खंडित करी शके तेम नथी।)॥४॥ ___'ज्झा' सूचवे छे के एकान्त-नित्य-दर्शनो अने एकान्त-अनित्य-दर्शनोने जीती लेवाथी उत्पन्न 25 थयेल उपाध्यायना यशरूपी भंभा (मेरी) नो ज्झाकार (गुंजारव) दिशाओने व्याप्त करी रह्यो छे // 5 // या- जे(बीजाओने) सात नयमां निपुणता प्राप्त थाय छे, परशास्त्रोमा जे निपुणता प्राप्त थाय छे अने द्वादशांगीना सूत्रोनी जे प्राप्ति थाय छे ते उपाध्याय सिवाय क्याथी होय ? अर्थात् न ज होय // 6 // 1. .ध्यायाम् क.। 2. सोमा० ग.हि., मा+ उमा=मोमा। 3. उपाध्यास्त उपा. क.। 4. वक्ष्यो० घ. वृद्धं हि.। 5. ०ध्यं महस्व तम् हि.। 30