________________ विभाग] 149 नमस्कारमाहात्म्यम् शुभाशुभैः परिक्षीणैः, कर्मभिः केवलस्य या / चिद्रूपतात्मनः सिद्धौ', सा हि शून्यस्वभावता // 20 // पञ्च-विग्रह-संहन्त्री, पञ्चमीगति-दर्शिनी / रक्ष्यात् पञ्चाक्षरीयं वः, पञ्चत्वादि-प्रपञ्चतः // 21 // इति द्वितीयः प्रकाशः समाप्तः // [तृतीयः प्रकाशः] न तमो न रजस्तेषु, न च सत्त्वं बहिर्मुखम् / न मनो वाग्वपुः-कष्टं, पैराचार्यांह्रयः श्रिताः // 1 // मोहपाशैर्महचित्रं, मोटितानपि जन्मिनः। मोचयत्येव भगवानाचार्यः केशिदेववत् // 2 // आचारा यत्र रुचिराः, आगमाः शिवसङ्गमाः। आयोपाया गतापायाः, आचार्य तं विदुर्बुधाः // 3 // शुभाशुभ सर्व कर्मनो क्षय थवा वडे केवळ आत्मानी जे चिद्रूपता-चैतन्यस्वभावता मोक्षमा छे ते ज शून्यस्वभावपणुं छे // 20 // पांच (औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस अने कार्मण) शरीरनो नाश करनारा अने मोक्षरूपी 15 पांचमी गतिने आपनारा आ 'नमो सिद्धाणं' पदना पांच अक्षरो मरण वगेरेना प्रपंचथी तमारं रक्षण करो // 21 // 20 बीजो प्रकाश नथी तेओमां तमो-गुण, नथी रजो-गुण, नथी बाह्य मुखवाळो सत्त्व-गुण अने नथी मानसिक, वाचिक के कायिक कष्ट तेओने, के जेओए आचार्यना चरणो सेव्या छे // 1 // मोहना पाशो वडे बंधायेला प्राणीओने पण आचार्य भगवान् केशिगणधरनी जेम मोहथी छोडावे छे ए मोटुं आश्चर्य छे // 2 // आचारो जेमनामां सुंदर छे, जेमना आगमो (शास्त्रो) मोक्ष मेळवी आपनारा छे अने जेमना , लाभना उपायो नुकसान विनाना छे तेमने डाह्या माणसो आचार्य कहे छे // 3 // 1. शुद्धौ घ.।