________________ विभाग] . नमस्कारमाहात्म्यम् परस्परं कोऽपि योगः, क्रिया-ज्ञान-विशेषयोः। स्त्री-पुंसयोरिवानन्दं, प्रसूते परमात्मजम् // 6 // भाग्यं पङ्गपमं पुंसां, व्यवसायोऽन्ध-सन्निभः / यथा सिद्धिस्तयोोंगे, तथा ज्ञान-चरित्रयोः // 7 // खड्ग-खेटकवज्ञान-चारित्र-द्वितयं वहन् / वीरो दर्शन-सन्नाहः, कले: पारं प्रयाति वै // 8 // नयतोऽभीप्सितं स्थानं, प्राणिनं' सत्तपाशमौ / समं निश्चल-विस्तारौ, पक्षाविव विहङ्गमम् // 9 // युक्तौ धुविवोत्सर्गापवादौ वृषभावुभौ / शीलाङ्गरथमारूढं, क्षणात् प्रापयतः शिवम् // 10 // निश्चय-व्यवहारौ द्वौ, सूर्याचन्द्रमसाविव / इहामुत्र दिवारात्रौ, सदोद्योताय जाग्रतः // 11 // अन्तस्तत्वं मनःशुद्धिर्बहिस्तत्त्वं च संयमः। कैवल्यं द्वयसंयोगे, तस्माद् द्वितयभाग् भव // 12 // ____ विशिष्ट क्रिया अने विशिष्ट ज्ञाननो परस्पर योग कोई जुदी ज जातनो होय छे। ते स्त्रीपुरुषना 15 संयोगनी जेम परमात्मजन्य आनंदने उत्पन्न करे छे // 6 // ___पुरुषोनुं भाग्य ए पंगु (पांगळा) जेवू छे अने उद्यम ए आंधळा जेवो छ। आम छतांय ए बन्नेनो संयोग थाय तो कार्यसिद्धि थाय छे। ए ज रीतिए एकलं ज्ञान पांगळा जेवं छे अने एकली क्रिया अंध जेवी छे; परन्तु ज्ञान अने क्रिया बन्नेनो सुयोग मळे तो मोक्षप्राप्तिरूप कार्यसिद्धि अवश्य थाय छे // 7 // वीर लडवैयो तरवार अने ढालने हाथमा राखीने अने बख्तरथी सज्ज थईने जेम युद्धना पारने 20 पामे छे तेम ज्ञानरूपी खड्ग, चारित्ररूपी ढाल अने सम्यगदर्शनरूपी बख्तर धारण करीने कर्मशत्रु साथे संग्राम खेलनार पराक्रमी आत्मा संसारना पारने पामे छे // 8 // जेम पक्षीने युगपत् संकोच अथवा विस्तारने पामती बे पांखो इष्ट स्थाने पहोंचाडे छे, तेम श्रेष्ठ तप अने शम जीवने मोक्षरूप इष्ट स्थाने पहोंचाडे छे // 9 // - जोडेला श्रेष्ठ बे बळद ज जाणे न होय तेवा उत्सर्ग अने अपवाद, शीलांगरथ उपर आरूढ 25 थयेलाने क्षणवारमा मोक्षने प्राप्त करावे छे // 10 // . जाग्रत पुरुषने सूर्य दिवसे अने चन्द्र रात्रिए हमेशां प्रकाश माटे थाय छे तेम निश्चय अने व्यवहार ए बे जाग्रत-विवेकी पुरुषना सदा उद्योत केवलज्ञानरूप प्रकाश माटे थाय छे // 11 // अने संयम ए बाह्य तत्त्व छे, ए उभयनो संयोग थवाथी मोक्ष मळे छे, माटे हे चेतन ! तुं बन्नेनुं धारण करनारो था // 12 // 1. प्राणिनः ग.। 30