________________ 146 . नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत 5 [द्वितीयः प्रकाशः] न जातिर्न मृतिस्तत्र, न भयं न पराभवः / न जातु क्लेशलेशोऽपि, यत्र सिद्धाः प्रतिष्ठिताः // 1 // मोचा-स्तम्भ इवासारः, संसारः क्वैष सर्वथा ? क्व च लोकाग्रगं लोक-सारत्वा(व)त्सिद्धवैभवम् // 2 // सितधर्माः सितलेश्याः, सितध्यानाः सिताश्रयाः। . सितश्लोकाश्च ये लोके, सिद्धास्ते सन्तु सिद्धये // 3 // सतां स्वमोक्षयोर्दाने, धाने दुर्गतिपाततः। मन्येऽहं युगपच्छक्ति, सिद्धानां द्धतिवर्णतः // 4 // यदि वा'द्धा' वर्णे सिद्धशब्देन, संयोगो वर्णयोर्दधोः। सकोऽयं सकर्णाना, फलं वक्तीव योगजम् // 5 // बीजो प्रकाश *नथी त्यां जन्म, नथी मरण, नथी भय, नथी पराभव अने नथी कदापि क्लेशनो लेश,ज्यां 15 सिद्धना जीवो रहेला छे // 1 // मोचास्तंभ (केळना थड)नी जेम लोकमां सर्व प्रकारे असार एवो संसार क्या ? अने लोकना अग्रभाग उपर रहेल अने लोकमां सारभूत एवो सिद्धोनो वैभव क्या ? // 2 // सित (उज्ज्वल) धर्मवाळा, शुक्ललेश्यावाळा, शुक्लध्यानवाळा, स्फटिक रत्न करतां पण अत्यन्त उज्ज्वल सिद्धशिलारूप आश्रयवाळा अने उज्ज्वल ज्ञानवाळा सिद्ध भगवंतो भव्योनी सिद्धिने माटे थाओ // 3 // सजनोने स्वर्ग अने मोक्ष देवावाळो होवाथी(दा)अने दुर्गतिमां पडताने धारण करनारो होवाथी(धा)-ए प्रमाणे सिद्धोना 'द्धा' वर्णमां उपरनी बन्ने शक्ति रहेली छे एम मार्नु छं // 4 // 'द्धा' वर्ण जे सिद्धाणं पदमां छे, तेमां 'द' अने 'ध' ए बे वर्णनो संयोग छे, ए संयोग काननी आकृति जेवो होवाथी 'सकर्ण' छे, ते सकर्णोने (निपुण जनोने) योगथी (जीवात्मा अने परमात्माना ऐक्यरूप योगथी) उत्पन्न थता मोक्षना फलने जाणे कहेतो न होय ! // 5 // 25 1. लोके सा० क.। 2. वक्तीति० क. ख. ग. हि.। * 'नमो सिद्धाणं' ना 'न' आदि अक्षरो फकरानी शरुआतमां आवे ए दृष्टिए विशिष्ट प्रकारे अनुवाद 20 करेल छे। .