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________________ विभाग] नमस्कारमाहात्म्यम् 145 तायिनः कर्मपाशेभ्यस्तारका मञ्जतां भवे / ताविकानामधीशा ये, तान् जिनान् प्रणिदध्महे // 19 // 'णं'कारोऽयं दिशत्येवं, त्रिरेखः शून्यचूलिकः / तत्वत्रयपवित्रात्मा, लभते पदमव्ययम् // 20 // सशिरस्त्रिसरलरेखं, सचूलमित्यक्षरं सदा ब्रूते / भवति त्रिशुद्धिसरलस्त्रिभुवनमुकुटत्रिकालेऽपि // 21 // सप्तक्षेत्रीव सफला, सप्तक्षेत्रीव शाश्वती। सप्ताक्षरीयं प्रथमा; सप्त हन्तु भयानि मे // 22 // इति श्रीसिद्धसेनाचार्यविरचिते श्रीनमस्कारमाहात्म्ये प्रथमः प्रकाशः समाप्तः // "तायिनः"-जीवोने कर्मना पाशमांथी छोडावनारा, संसारसमुद्रमा डूबता प्राणीओने तारनारा 10 अने तत्त्वज्ञानीओना पण स्वामी एवा श्री जिनेश्वर भगवंतोनुं अमे ध्यान करीए छीए // 19 // गं ए अक्षर त्रण उमी लीटीओवाळो अने माथे बिंदुवाळो छे, ए एम सूचवे छे के–देव, गुरु अने धर्मरूप त्रण तत्त्वनी आराधना वडे पोताना आत्माने पवित्र करनार भव्य जीव शाश्वत स्थान-मोक्षने पामे छे ('ण' मां त्रण रेखाओ ते तत्त्वत्रय अने बिंदु ते सिद्धिपद जाणवू / ) // 20 // ... उपरनी तिर्यग् रेखारूप मस्तकसहित, त्रण सरल रेखासहित अने बिंदुरूप चूलासहित ‘णं' 15 अक्षर सदा कहे छे के त्रिकरण (मन, वचन अने काया) शुद्धि वडे सरल बनेल महात्मा त्रणे काळमां पण त्रिभुवनशिरोमणि बने छे // 21 // सांत क्षेत्रनी जेम सफळ तथा सौत क्षेत्रनी जेम शाश्वत एवा नमस्कार महामंत्रना प्रथम 'नमो अरिहंताणं' पदना सात अक्षरो मारा साँत प्रकारना भयोनो नाश करो // 22 // 1. (1) जिनमूर्ति, (2) जिनमन्दिर, (3) जिनागम, (4) साधु, (5) साध्वी, (6) श्रावक अने (7) 20 श्राविका–ए धनव्यय माटेनां अवंध्यफळवाळां उत्तम क्षेत्रो गणाय छे / .. 2. (1) भरत, (2) हैमवत, (3) हरिवर्ष, (4) महाविदेह, (5) रम्यक् , (6) हैरण्यवत अने (7) एरावत क्षेत्रो शाश्वत छ। 3. (1) इहलोक, (2) परलोक, (3) अकस्मात् , (4) आजीविका, (5) आदान, (6) मरण अने (7) अपयश संबंधी भयो। 25
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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