________________ [59-14] श्रीसिद्धसेनसरिप्रणीतं श्रीनमस्कारमाहात्म्यम्॥ [प्रथमः प्रकाशः] ___ (अनुष्टुप्-वृत्तम्) नमोऽस्तु गुरवे कल्प-तरवे जगतामपि / वृषभस्वामिने मुक्ति-मगनेत्रैकामिने // 1 // तपोज्ञान-धनेशाय, महेन्द्रप्रणताहये। सिद्धसेनाधिनाथाय, श्रीशान्तिस्वामिने नमः // 2 // नमोऽस्तु श्रीसुव्रताया-ऽनन्तायाऽरिष्टनेमिने। श्रीमत्पार्थाय वीराय, सहिदभ्यो नमो नमः // 3 // देव्योऽच्छुप्ताऽम्बिका-ब्राह्मी-पद्मावत्यङ्गिरादयः / मातरो मे प्रयच्छन्तु, पुरुषार्थपरम्पराम् // 4 // जीयात् पुण्याङ्गजननी, पालनी शोधनी च मे। हंस-विश्राम-कमल-श्रीः सदेष्ट-नमस्कृतिः // 5 // त्रण जगतना गुरु, जगतना कामित पूरण माटे कल्पवृक्ष समान अने मुक्तिरूपी स्त्रीना ज कामी एवा श्रीऋषभदेवस्वामीने नमस्कार थाओ // 1 // तप अने ज्ञानरूपी भावधनना स्वामी देवेंद्रो वडे पण नमस्कृत चरणवाळा अने योगसिद्धादि महापुरुषोना वृंदना परम नाथ [श्री सिद्धसेन (अन्यकर्ता)ना परम नाथ], एवा श्री शान्तिनाथस्वामीने 20 नमस्कार थाओ // 2 // ___ श्री मुनिसुव्रतस्वामीने, श्री अनन्तनाथस्वामीने, श्री अरिष्टनेमिप्रभुने, श्री पार्श्वनाथस्वामीने, श्री महावीरस्वामीने अने त्रणे काळना सर्व अरिहंत भगवंतोने वारंवार नमस्कार थाओ // 3 // धर्मनिष्ठ आत्माओने मातानी जेम सहाय करनारी अच्छुप्ता, अम्बिका, ब्राह्मी (सरस्वती), पद्मावती अने अंगिरा वगेरे देवीओ मने पुरुषार्थनी परंपरा आपो // 4 // 25 इष्ट पंचनमस्कृति मारा पुण्यरूप देहवें जनन, पालन अने शोधन करनारी माता छ। मारा आत्महंसना विश्राम माटे ते कमलिनी छे / ते सदा जय पामो // 5 // 1. 'नेमये' ख० घ०। 2. पद्मा-प्रत्यकिरादयः ग० घ० हि /