________________ - [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय त्रिप्राकार-स्फुरज्ज्योतिः-समवसृतिमध्यगम् / चतुःषष्टिसुराधीशैः पूज्यमानक्रमाम्बुजम् // 109 // छत्रत्रयं पुष्पवृष्टि-मृगेन्द्रासन-चामरे (राः 1) / अशोक-दुन्दुभि-दिव्यध्वनिर्भामण्डलान्यपि // 110 // इत्यष्टभिः प्रातिहाभूषितं सिंहलाञ्छनम् / संसदन्तःसुवर्णाभं वर्धमानं जिनं हृदि // 111 // साक्षाद् विलोकयन् ध्याता तल्लीनाक्षिमना अमुम् / अष्टोत्तरं शतं मन्त्रं सूरिमन्त्रसमं जपेत् // 112 // एतद् यन्त्रं जैनधर्मचक्रमष्टारभासुरम् / अष्टदिक्षु स्फुरद्भाभिः शतयोजनदीपकम् // 113 // तच्छायाक्रान्तिवित्रस्तदुरितं सर्वपूजितम् / आत्मानं च स्मरेन्नित्यं तस्य स्युरष्टसिद्धयः॥११४॥ मोक्षाभिचार-मारेषु शान्त्याकृष्टयादिषु क्रमात् / अङ्गुष्ठादि-कनिष्ठान्तमक्षसूत्रं करे धरेत् // 115 // इति श्रीलघुनमस्कारचक्रम् // ध्याताए त्रण गढथी स्फुरायमान-प्रकाशवाळा, समवसरणनी मध्यमां रहेला, चौसठ इन्द्रोथी जेमनां चरणकमळ पूजाय छे एवा अने त्रण छत्रो, पुष्पवृष्टि, सिंहासन, चामर, अशोकवृक्ष, दुंदुभि, दिव्य ध्वनि अने भामंडल—एम आठ प्रातिहार्योथी अलंकृत, सिंहना लांछनवाळा, सुवर्ण जेवी कांतिवाळा, पर्षदामां विराजमान श्रीवर्धमान जिनेश्वरने हृदयमां साक्षात् जोवा / ध्यान करनारे एमनी अंदर नेत्र अने 20 मनने लीन करीने 'सूरिमंत्र' समान आ मंत्रनो एकसो आठ वार जाप करवो // 109-111 // ___ आ यंत्र आठ आराओथी देदीप्यमान एवं “जैन धर्मचक्र' छे / आठे दिशाओमां स्फुरायमान प्रभा वडे सेंकडो योजन सुधी आ चक्र प्रकाशने पाथरी रह्यु छ / तेनी छायाना आक्रमण वडे जेनां सर्व पाप नाश पाम्यां छे अने तेथी जे सर्व वडे पूजाई रह्यो छे एवा स्वात्मानुं जे सदा ध्यान . करे छे, तेने आटे सिद्धिओ वरे छे // 112-114 // 25 मोक्ष माटे अंगूठा द्वारा, अभिचार माटे तर्जनी द्वारा, मारण माटे मध्यमा द्वारा, शांति माटे अनामिका द्वारा अने आकर्षण माटे कनिष्ठा द्वारा अक्षसूत्र-माळा वडे जाप करवा // 115 //