________________ विभाग] लघुनमस्कारचक्रस्तोत्रम् सहस्रदलपनान्तःपर्यङ्कासनसंश्रितम् / प्रसन्माभिर्जयादृ(घ)ष्टसुरीभिस्तीर्थवारिभिः // 105 // भृतैः सुवर्णभृङ्गारवक्त्रदत्ताम्बुजैः स्वकम् / स्नप्यमानं विचिन्त्यामुं मन्त्रं हृदि विचिन्तयेत् // 106 // 'ॐ नमो अरिहंताणं अशुचिः शुचिरित्यतः। भवामि स्वाहा' इति स्नातः कुर्याद् देहस्य रक्षणम् // 107 // "ॐ नमो अरिहंताणं ही हृदयं रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा / ॐ नमो सिद्धांणं हर हर शिरो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा / ॐ नमो आयरियाणं ही शिखां रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा / ॐ नमो उवज्झायाणं एहि भगवति चक्रे कवचवजिणि हुं फट् स्वाहा। ॐ नमो लोए सब्बसाहूणं क्षिप्रं साधय साधय दुष्टं वज्रहस्ते / शूलिनि रक्ष रक्ष 'आत्मरक्षा' सर्वरक्षा हुं फट् स्वाहा // " कृत्वाऽमीभिः 'स्वाङ्गरक्षां' 'दिग्बन्धं' 'चेन्द्रभूतये / स्वाहा'थैः सर्वगणभृदाह्वानं क्रियते ततः॥१०८॥ 10 सहस्रदल पद्ममां वच्चे पोते पर्यकासने बेठेल छे अने जेमना मुख पर कमळो मूकेला छे एवा 15 सुवर्ण कलशो वडे जयादि आठ देवीओ तीर्थजलोथी पोतानो (ध्यातानो) अभिषेक करे छे, एम चिंतवे / ते वखते निम्नोक्त मंत्र हृदययां चिंतववो // 105-106 // . "ॐ नमो अरिहंताणं अशुचिः शुचिः भवामि स्वाहा।" एम मंत्र वडे स्नान करीने शरीरना रक्षण माटे (नीचेना मंत्रो) बोलवा"ॐ नमो अरिहंताणं ही हृदयं रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा। ॐ नमो सिद्धाणं हर हर शिरो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा। ॐ नमो आयरियाणं ही शिखां रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा / ॐ नमो उवज्झायाणं एहि भगवति चक्रे कवचवजिणि ! हुं फट् स्वाहा / ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं क्षिप्रं साधय साधय दुष्टं वज्रहस्ते शूलिनि ! रक्ष रक्ष आत्मरक्षा सर्वरक्षा हुं फट् स्वाहा // " : . आ (बधा) मंत्रोथी पोताना अंगनी रक्षा करवी। पछी दिग्बंधन करीने “ॐ इन्द्रभूतये स्वाहा।" इत्यादि मंत्रो वडे सर्व गणधरोनुं आह्वान करवू // 107-108 // 25