________________ 138 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत अष्टारमौलिकुम्भेषु 'जम्भे मोहे'-चतुष्टयम् / द्विरावर्त्य क्रमाल्लेख्यमयं मन्त्रश्च पश्चिमे // 99 // "ॐ नमो अरिहंताणं एहि एहि नन्दे महानन्दे पन्थे बन्धे दुप्पयं / बंधे चउप्पयं बंधे घोरं आसिविसं बन्धे जाव गण्ठिं न मुञ्चामि // " इमामष्टशतं स्मृत्वा कृत्वा प्रन्थि स्ववाससि / पथि गम्यं न चौराद्युपद्रवः छोट्यते स्थितौ // 10 // मायावीज त्रिरेखाभिरुपर्यावेष्टयमन्ततः। क्रौ भूमण्डलं यद्वा (1) वारुणं स्वस्ववर्णकम् // 101 // मध्ये'ई 'बीजमावेष्टयं केचिद् रत्नत्रयाक्षरैः / केचित् (च) बीजचक्रेण गुरुरेव प्रमा मतिः(तः)॥१०२ // 10 ध्यानम् अथ ध्यानविधि वक्ष्ये जितेन्द्रियदृढव्रतः। सम्यग्दृग् गुरुभक्तश्च सत्यवाग् मन्त्रसाधकः // 103 / / एकान्ते शुचिभूमौ सः पूर्वोत्तराश(शा)दिङ्मुखः / तीर्थाम्भो-गोमय-रसैः सिक्तां भूमि विचिन्तयेत् / / 104 // 15 आठ आराना शिखर ऊपर रहेला कुंभोमां 'जंभे मोहे' इत्यादि चतुष्टय बे वार चारे दिशामां क्रमशः लखवू अने आ मंत्र पश्चिम दिशामा लखवो ___ "ॐ नमो अरिहंताणं एहि एहि नंदे महानंदे पंथे बंधे दुप्पयं बंधे चउप्पयं बंधे घोरं आसीविसं बंधे जाव गठिं न मुंचामि।" 20 आ विद्यानुं एक सो ने आठ वार स्मरण करीने पोताना वस्त्रमा गांठ वाळवी; आधी मार्गे जतां चोर वगेरेनो उपद्रव नडतो नथी। स्थाने पहोंच्या पछी गांठ छोडवी // 99-100 // ___ पछी यंत्रने मायाबीज-हीकारथी नीकळती त्रण रेखाओथी वीटीने अंते 'क्रो' लख् / पछी पोतपोताना वर्णनुं भूमंडल अथवा वारुण मंडल कवू ) // 101 // ___ मध्यमां 'अर्ह' (ई) बीजनुं आवेष्टन करवू / केटलाक त्रण रत्नना अक्षरो (थी) अने 25 केटलाक बीजाक्षरना चक्रनु(थी) आवेष्टन करवानुं जणावे छे; (एमां तो) गुरु ए ज प्रमाण छे (?) // 102 // हवे ध्यानविधि कहे छे ____ हवे हुं ध्यानविधि जणावीश—जितेन्द्रिय, दृढव्रती, सम्यग्दृष्टि, गुरुभक्त, सत्यवादी एवा मंत्रसाधके एकांतस्थानमा पवित्र भूमि पर पूर्व, उत्तर के ईशान (2) दिशा तरफ मों राखीने ध्यानभूमि गोमयथी लीपेली तथा तीर्थजलोथी सिंचायेली छे एम चिंतवतुं // 103-104 //