________________ विभाग] 137 लघुनमस्कारचक्रस्तोत्रम् दक्षिणस्यां दिशि] 'ॐ प्राग व्यक्तायाथ मरुमभः।' 'ॐ प्राक् सुधर्मस्वामिने स्वाहा' इति [च] पदद्वयम् // 93 // नैऋते 'प्रणवः पूर्व मण्डिताय मरुनमः / ' 'प्रणवो मौर्यपुत्राय स्वाहा' इति गणभृवयम् // 94 // पश्चिमायां 'वाय्वग्निभ्यां स्वाहा'न्ते' प्रणवः पुरः। अकम्पिताऽचलभ्राता मेतार्य इति मध्यतः॥९५॥ प्राच्यां गाथेश[ :1] काष्ठादौ चतुर्विदिक् त्रिदिक् क्रमात् / द्वौ द्वावेकैकः(कश्च) सरिराजान इति मे मतिः॥९६ // यद्वा, प्राच्यां गुरुरतः प्राग्वद् गौतमासनमम्बुजम् / गाथाबीजयुतं ध्यानं वाच्यं प्राक्सरियन्त्रतः // 9 // बहिश्चतुर्दलं पचं चतुर्दिक्षु लिखेदिदम् / 'ॐ नमो सव्वसिद्धाणं' पदं सर्वार्थसाधकम् // 98 // दक्षिणदिशामां-(१) ॐ व्यक्ताय स्वाहा। (2) ॐ सुधर्मस्वामिने स्वाहा–एम लखवू // 93 // नैर्ऋत्यदिशामां-(१) ॐ मण्डिताय स्वाहा / (2) ॐ मौर्यपुत्राय स्वाहा-एम बे गणधरोनां 15 नाम लखवां // 94 // ___ पश्चिमदिशामां-ॐ अकम्पिताय स्वाहा। वायव्यदिशामां-ॐ अचलभ्रात्रे स्वाहा / अग्निदिशामां-ॐ मेतार्याय स्वाहा // 95 // पूर्वदिशामां एक गाथा अने दिशाओ पैकी चारे विदिशाओमां बे बे (मळीने आठ) अने बाकीनी त्रण दिशाओमां एकेक एं प्रमाणे सूरिराजाओ-गणधरोने स्थापवा एम हुं मानु (!) // 96 // 20 अथवा पूर्वदिशामां गुरु छे तेथी, पहेलांनी माफक गौतमस्वामीनुं आसन कमळ छे एटले कमळनी वच्चे गौतमस्वामीनुं गाथाबीज साथेनुं ध्यान पहेला जणावेला 'सूरियंत्र' मुजब समजवू // 97 // ___बहारना चार पत्रवाळा कमळमां चारे दिशामां 'ॐ नमो सव्वसिद्धाणं' लखq। ए पद सर्वअर्थ- साधक छे॥९८॥ 25 .. १०हान्तःप्र० झ। 1 मरुत् = स्वा। 2 नभः = हा /