________________ [संस्कृत 136 नमस्कार स्वाध्याय उक्तं च-'बिन्दु विनाऽपी'त्यादिचतुःश्लोकी। चतुर्षु पटकोणेषु चतुरष्टं-दर्श-द्विकम् / अष्टापदजिना झेयाः ‘चत्तारि' इत्यादिगाथया // 87 // यदिवाऽष्टचत्वारिंशत्सहस्रा द्वयधिकं शतम्। जातीसुमनसां जापो होमो दशांशभागथ(तः) // 88 // 'श्रीइन्द्रभूतये स्वाहा' 'ॐ प्रभासाय' पूर्ववत् / पटस्यैशानकोणे द्वे(द्वौ) गाथैका पूर्वदिग्गता / / 89 // 'सोमे य वग्गु-वग्गू(ग्गु) सुमणे सोमणसे तह य महुमहुरे / किलिकिलि अप्पडिचक्का हिलिहिलि देवीओ सव्वाओ' // 9 // 10 'ॐ अग्निभूतये स्वाहा' स्वाहान्ते वायुभूतये। पटस्यानेयकोणे द्वौ मन्त्रावेकस्तयोरधः // 91 // 'ॐ असि आ उ सा हुलु [हुल] चुलुद्वयं ततः। इच्छियं मे कुरुद्वन्द्वं स्वाहा' सर्वार्थसिद्धिदा // 92 // 15 'बिन्दु विनाऽपि' इत्यादि चार श्लोकोमां पण ए ज कहेवामां आव्युं छे / पटना चार खूणामां ‘चत्तारि अट्ठ-दस-दोय' ए गाथा मुजब, अष्टापदपर जे प्रकारे चार, आठ, * दश अने बे जिनेश्वरो छे तेम अहीं पण समजवा* // 87 // अथवा अडतालीस हजार ने बसो (48200) प्रमाण जुईनां पुष्पोथी जाप करवो अने तेना दशमा भागे (एटले 4820 वार) होम करवो // 88 // . पटना ईशानखुणामां-(१) ॐ इन्द्रभूतये स्वाहा। (2) ॐ प्रभासाय स्वाहा—आ बे मंत्रो 20 अने पूर्वदिशामां नीचेनी एक गाथा लखवी "सोमे य वग्गु वग्गु सुमणे सोमणसे तह य महुमहुरे। किलिकिलि अप्पडिचक्का हिलिहिलि देवीओ सव्वाओ॥"॥ 89.90 // पटना अग्निखूणामां—(१) ॐ अग्निभूतये स्वाहा। (2) ॐ वायुभूतये स्वाहा—आ बे मंत्रो अने (नीचेनो) एक मंत्र तेनी नीचे (आ प्रकारे) लखवो25 "ॐ असि आ उ सा हुलु हुलु चुलु चुलु इच्छियं मे कुरु कुरु स्वाहा।”—आ विद्या सर्वसिद्धिने आपनारी छे // 91-92 // 1 जातिसु० अ। २०हान्तवा० अ। * पट-यंत्रना चारे खूणामां 'चत्तारि ' गाथा मूकवी अने ते प्रमाणे भगवंतनां नामो के आकृतिओ (1) आलेखवी।