________________ विमाग] 133 लघुनमस्कारचक्रस्तोत्रम् सप्तमे वलये ॐ प्राक् 'नमो सिद्धाणं' इत्यतः / 'तव' इत्याद्यां लिखेद् गाथां 'स्वाहा'न्तां शिवगामिनीम् // 73 // 'तवनियमसंयमरहो पंचनमोकारसारहिनिउत्तो। नाणतुरंगमजुत्तो नेह पुरं परमनिव्वाणं' // 74 // 'ॐ प्राग् धणुद्वयं तस्मान्महाधणु-महाधणु। स्वाहा' इतीमां धनुर्विद्यामष्टमे वलये लिखेत् // 75 // कायोत्सर्गे उपोष्यैनां श्रीवीरप्रतिमाग्रतः। अष्टोत्तरं सहस्र प्राग् जपेत् सिद्धा मुनेरसौ // 76 // स्मृत्वैतां [च] पथि धूल्यन्तराऽऽलिख्य सशरं धनुः / आक्रम्य वामपादेन मौनी गच्छेन्न दस्यवः // 77 // युद्धकाले जिनं वीरं संपूज्याष्टशतस्मृतेः / प्राग्वद् धनुःक्रियां कृत्वा युद्धे गच्छेन शस्त्रभीः // 78 // . परेषां सम्मुखीभूतां धनुर्विद्यां महोमयीम् / इन्द्रचापसदृक्कान्ति ध्यायेन्मन्त्रं पठेदमुम् // 79 // सातमा वलयमा पहेलां 'ॐ नमो सिद्धाणं' लखीने नीचेनी 'शिवगामिनी' गाथा लखवी- 15 "तव-नियम-संयमरहो पंचनमोकारसारहिनिउत्तो। . नाणतुरंगमजुत्तो नेइ पुरं परमनिव्वाणं // " -पंच नमस्काररूपी सारथियी नियुक्त अने ज्ञानरूपी अश्वोथी सहित एवो तप, नियम अने संयमरूपी रथ परमनिर्वाण-मोक्षपुरमा लई जाय छ / 'आ गाथा लखीने अंते 'स्वाहा' लखवू // 73-74 // . - 20 आठमा वलयमां-'ॐ धणु धणु महाधणु महाधणु स्वाहा।'आ प्रकारे 'धनुर्विद्या' लखवी // 75 // उपवास करीने श्रीवीर भगवाननी प्रतिमा आगळ कायोत्सर्गमा रहेला मुनि-मंत्राचार्य एनो एक हजार ने आठ वार जाप करे तो आ विद्या सिद्ध थाय छे // 76 // आ विद्यानुं स्मरण करीने मार्गमां धूळनी अंदर बाण साथे धनुष्य- (चित्र) आलेखन करवू / ए 25 (चित्रलेखन) ने मौनपूर्वक डाबा पगथी ओळंगq / एथी शत्रुओ (सामे) आवता नथी // 77 // .... युद्ध समये श्रीवीरजिनेश्वरने पूजीने आ मंत्रनुं एकसो ने आठ वार स्मरण करवाथी अने पहेलांनी माफक ज धनुष्यनी क्रिया (आलेखन वगेरे) करीने युद्धमा जतां शस्त्रनो भय रहेतो नथी // 78 // बीजाओनी सामे थती आ तेजस्वी 'धनुर्विद्या' छे, तेनी कांति इन्द्रधनुष्य जेवी छे, ए प्रकारे ध्यान करतां आ (धनुर्विद्या)नो पाठ करवो जोईए // 79 // . .. 30