________________ 132 [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय दानं दीनादिषु प्राज्यं देयमेवंकृते सती(ति)। मारिनिवर्तते किन्तु तत्कुम्भजलसेचनात् // 66 // . गोमार्यादिषु गोवाटप्रवेशे श्रावकैः शुभैः। तत्कुम्भजलसिक्ता गौमूर्ध्नि गोमारिवारणम् // 67 // पञ्चमे वलये लेख्या 'ॐ नमः' पूर्वमेष्वि(षि)का / स्वाहान्ता गाथिका क्षेत्र-स्वसैन्यत्राणकारिणी // 68 // "अद्वैव य अट्ठसयं अट्ठसहस्सा य अट्ठकोडीओ। रक्खंतु मे सरीरं देवासुरपणमिया सिद्धा" // 69 // भूर्यादावेषिका गाथा लिखिता चन्दनादिभिः / रक्ष्या जिनान्तिके पूज्या बद्धा दोषज्वरापहा // 70 // 'ॐ नमो अरिहंताणं' पूर्व 'अट्ठविहा 'दिकाम् / गाथां वलये षष्ठे स्वाहान्तां विलिखेन्मुनिः // 71 // 'अट्ठविहकम्ममुक्को तिलोयपुजो य संथुओ भगवं / अमर-नर-रायमहिओ अणाइनिहणो सिवं दिसउ' // 72 // 20 15 गायोना मस्तके श्रावकोए ते कुंभनुं जल छांटईं। एथी गायोमां फेलायेली ;मरकीनुं निवारण थाय छे॥ 61-67 // पांचमा वलयमा पहेलां 'ॐ नमः' लखवं, ते पछी नीचेनी गाथा लखवी"अटेव य अट्ठसयं अट्ठसहस्सा य अट्ठकोडीओ रक्खंतु मे सरीरं देवासुरपणमिया सिद्धा॥" पछी अंते 'स्वाहा' लखवू / एथी क्षेत्र अने पोताना सैन्यनुं रक्षण थाय छे // 68-69 / / भोजपत्रमा आ गाथाने चंदन वगेरेथी लखवी। ते पत्रने श्रीजिनेश्वर देवने सामे राखीने गाथार्नु पूजन करवू / आ गाथाने (हाथे) बांधवामां आवे तो कोई दोष नडतो नथी अने ताव दूर थाय छे // 70 // मुनिए (मंत्राचार्य) छट्ठा वलयमां 'ॐ नमो अरिहंताणं' लखीने आ गाथा लखवी____भट्टविहकम्ममुक्को तिलोयपुज्जो य संथुओ भगवं। अमर-नर-रायमहिओ अणाइनिहणो सिवं दिसउ॥" -आठ प्रकारनां कर्मोथी रहित, त्रणे लोकथी पूजायेला अने स्तवायेला देवेंद्रो अने चक्रवर्तिओयी पण पूजित अने जेमने आदि अने अंत नथी एवा हे भगवन् ! अमने मोक्ष आपो। आ गाथा लखीने अंते 'स्वाहा' लखवू // 71-72 // 1. सैन्ये त्रा०३। 2. भूर्नादा० /