________________ [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय "ॐ नमः पूर्व थंभेइ" इति गाथा चतुर्थके। वलये योजनशतं यावत् स्तम्भक्रिया भवेत् // 35 // "ॐ नमो थंभेइ जलं जलणं चिंतियमित्तो वि पंचनवकारो अरि-मारि-चोर-राउल घोरखसम्गं पणासेइ // 36 // अत्र विधि:शिलापट्टेऽथ भूर्जे वा फलके क्षीरवृक्षजे / कुं-गो-गोमय-गोक्षीरैर्जात्यादिलेखनीकरः // 37 // [शान्तिपाठः"मुक्त्वा स्त्री-गज-रत्न-चक्रमहतीं राज्यश्रियं श्रेयसे प्रव्रज्या दुरिताश्रयप्रमथनी येन श्रिताऽभूत् पुरा। मृत्यु-व्याधि-जरावियोगमगमत् स्थानं च योऽत्यद्भुतं तं वन्दे मुनिमप्रमेयमृषभं सेन्द्रामराभ्यर्चितम् // 58 // " "ॐ नमो थंभेइ जलं जलणं चिंतियमित्तो वि पंचनवकारो। अरि-मारि-चोर-राउल घोरुवसग्गं पणासेइ // " 15 (पंच नमस्कार चिंतनमात्रथी पाणी अने अग्निने थंभावे छे तेमज शत्रु, महामारी, चोर अने ___ राजकुळोथी थता घोर उपद्रवोनो नाश करे छे / ) __ आ गाथा चोथा वलयमां लखवी। एथी सो योजन सुधी स्तम्भनक्रिया थई शके छे // 35-36 // अहींथी विधि दर्शावे छे जूई वगेरेनी डाळीथी बनावेली लेखनी हाथमां लईने कुंकुम, गोरोचना, गायनुं छाण अने 20 गायना दूध वडे पथ्थरनी शिला ऊपर, भूर्जपत्र ऊपर अथवा क्षीरवृक्षना पाटिया ऊपर (आ प्रकारे) लखq (2) // 37 // ('मुक्त्वा० ' श्लोक शांतिपाठ छे, ते बोलवो, ते श्लोकनो अर्थ-) जेमणे स्त्रीओ, हाथीओ, रत्नोना समूहथी युक्त एवी महान राजलक्ष्मीनो त्याग करीने कल्याणना अर्थे पापना आश्रयभूत मोहनीय कर्मनो नाश करनारी दीक्षाने पूर्वे अंगीकार करी हती अने मृत्यु, व्याधि 25 अने वृद्धावस्था ज्यां नथी एवा अत्यंत अद्भुत स्थानने (मोक्षने) प्राप्त कयुं हतुं ते अप्रमेय (जेमना संपूर्ण स्वरूपने छमस्थ न जाणी शके एवा) अने जेमनी इंद्रो सहित देवताओए पूजा करी छे एवा मुनिपति श्री ऋषभदेवस्वामीने हुं वंदन करूं छु // 58 // . x x + 37 गाथातः 57 गाथापर्यन्तो गर्भवतीस्त्रीणां विधिर्नोद्धृतः //