________________ विभाग] लघुनमस्कारचक्रस्तोत्रम् "ॐ ह्रीं नमो भगवओ तिहुयणपुजस्स वद्धमाणस्स / जस्सेयं खलु चकं जलंतमागच्छए पयर्ड // 11 // आयासं पायालं लोयाणं तह य चेव भूयाणं / जूए वांवि रणे वो विच्चं रायंगणे वावि // 12 // एवं च-'थंभणे मोहणे तह य सव्वजीवसत्ताणं'। अपराजिओ भवामि स्वाहा" इय मंतविनासो // 13 // चैत्रेऽष्टाह्निकायां तु त्रयोदश्यां विशेषतः। सहस्रः जातिकुसुमैः सप्तभिर्वीरमर्चयेत् // 14 // जापैः सहस्रैरेतैः स्यादखण्डैः शालितण्डुलैः। दृढब्रह्मव्रतस्यैवं सिद्धाऽसौ पठि (१पाठ)तोऽथवा // 15 // सन्ध्याद्वये स्मरन्नेवं व्यसनैग्रह-मुद्गलैः। द्विपदैः श्वापदैर्दुष्टैर्न पराजीयते क्वचित् // 16 // अत्र कूटाक्षराः सर्वे सस्वरा अष्टवर्गतः / ते स्युर्वद्धनमस्कारचक्रे अष्टारकक्रमात् // 34 // 15 (सित्तर वर्णोनो मंत्र आ प्रकारे छे-) "ॐ ही णमो भगवओ वद्धमाणसामिस्स जस्स चक्कं जलंतं गच्छइ आयासं पायालं लोयाणं भूयाणं जूए वा रणे वा रायंगणे वा बंधणे मोहणे थंभणे सव्वसत्ताणं अपराजिओ भवामि स्वाहा // " आ प्रकारे विन्यास-मंत्रना उद्धार पूर्वक स्थापना करवी // 11-13 // . चैत्र महिनानी अष्टाह्निका (सातमथी पूनम) मां अने खास करीने त्रयोदशी (श्रीमहावीर प्रभुना 20 जन्मकल्याणक) ना दिवसे सात हजार जाईनां पुष्पोथी वीर भगवाननी पूजा करवापूर्वक सात हजारनो जाप करवाथी अथवा सात हजार अखंड शाली अक्षतथी जाप करतां दृढ ब्रह्मचारीने आ विद्या पाठसिद्ध थाय छे॥॥१४-१५॥ बंने संध्याए आनुं ध्यान करतां आपत्तिओ, ग्रहो, मुद्गलादिना प्रयोगो, अथवा दुष्ट हिंस्र पशुओथी क्यांय पण पराभव थतो नथी // 16 // . 25 अहीं बधा कूटाक्षरो ते स्वर सहित आठ वर्ग समजवा / ते बधा 'वृद्धनमस्कारचक्र' मा आठ आराओना क्रमथी जाणवा // 34 // 1. वा रयणे अ। 2. वा निच्चं झ। 3. तन्दुलैः / + इतः 16 गाथातः 33 गाथा पर्यन्तो वन्ध्यादिस्त्रीणां प्रयोगो नोद्धृतः //