________________ 128 . [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय 'ॐ नमो चत्तारि मंगलं अरिहंता मंगलं सिद्धा'। जाव 'धम्म सरणं पवजामि' एवं द्वादशपदी // 6 // अर्हत्-सिद्धाः साधुधर्मो मङ्गलचतुष्टयं तद्वत् / लोकोत्तरशरणमपि लेख्यं वलये द्वितीये तु // 7 // द्वादशान्तर्मनाः साधुः पञ्चदशपदीमिमाम् / विद्यां सप्रणवां ध्यायन् शिवं यात्यपकल्मषः // 8 // उक्तं च, मङ्गल-लोकोत्तम-शरण्यपदसमूहं सुसंयमी स्मरति / अविकलमेकाग्रतया लभते स स्वर्गमपवर्गम् // 9 // तृतीये वलये ॐ मायायुता वर्णसप्ततिः / बीजाक्षरचतुष्कं च जिनबीजपदांश्रयम् // 10 // "ॐ ही श्री अह" 10 वळी 'ॐ नमो चत्तारि मंगलं-अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं' थी लईने 'धम्म सरणं पवजामि / सधीनां बार पदो वडे अरिहंत. सिद्ध, साध अने धर्म-ए चार लोकोत्तम, मंगल अने 15 शरण सूचवाय छे / ते पदो बीजा वलयमां लखवां (बार पदी लखवी।)॥ 6-7 // चार मंगल, चार लोकोत्तम अने चार शरण्य ए बारने मनमां धारण करीने प्रणवथी सहित एवी आ पंचदशपदी (पंदर पदवाळी) विद्यानुं ध्यान करतो साधु सर्व पापोथी रहित थईने मोक्षमां जाय छ। पंचदशपदी विद्या आ रीते छे: ॐ नमो चत्तारि मंगलं-अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साडू मंगलं, केवलिपन्नत्तो 20 धम्मो मंगलं / - ॐ नमो चत्तारि लोगुत्तमा–अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो। ॐ नमो चत्तारि सरणं पवज्जामि-अरिहंते सरणं पवजामि, सिद्धे सरणं पवजामि, साहू सरणं पवज्जामि, केवलिपन्नत्तं धम्म सरणं पवजामि // 8 // 25 कयुं छे के "चार मंगलो, चार लोकोत्तम अने चार शरण्यना परिपूर्ण पदसमूहने जे सुसंयमी एकाग्रताथी स्मरण करे छे ते स्वर्ग अथवा मोक्ष पामे छे // 9 // त्रीजा वलयमां ॐ अने माया-ही पूर्वक सित्तर वर्णो अने जिनबीज 'अहं' पदना आश्रयभूत चार बीजाक्षरो ॐ ही श्री अर्ह लखवा // 10 // 30 1. °दाश्रयः /