________________ विभाग] 125 परमेष्ठिविधायन्त्रकल्पः किं बीजैरिह शक्तिः कुण्डलिनी सर्वदेववर्णजनुः / रवि-चन्द्रान्तर्ध्याता भुक्त्यै मुक्त्यै च गुरुसारम् // 76 // भ्रूमध्य-कण्ठ-हृदये नाभौ कोणे त्रयान्तरा ध्यातम् / परमेष्ठिपञ्चकमयं मायावी महासिद्धथै // 77 // श्रीविबुधचन्द्रगणभृच्छिष्यः श्रीसिंहतिलकसरिरिमम् / परमेष्ठियन्त्रकल्पं लिलेख साह्राददेवताभक्या / / 78 // इति परमेष्ठिविद्यायन्त्रकल्पः॥ 10 अथवा बीजोथी शुं ? अहीं तो एक कुंडलिनी शक्ति ज सर्बदेवस्वरूप वर्णोने उत्पन्न करनारी छे। सूर्य अने चन्द्र नाडीमां (सुषुम्णामां) तेनुं ध्यान करवाथी ते भुक्ति-भोग अने मुक्ति मोक्ष माटे बने छे–एवं गुरुए आपेलं रहस्य छे // 76 // - भूमध्य (आज्ञाचक्र)मां, कंठ (विशुद्धचक्र)मां, हृदय (अनाहतचक्र)मां, नाभि (मणिपूरचक्र)मां कोणद्वय (स्वाधिष्ठान अने मूलाधारचक्र)मां पंचपरमेष्ठिमय मायाबीज-'ही' नुं ध्यान महासिद्धि माटे थाय छे // 77 // . श्रीविबुधचंद्र आचार्यना शिष्य श्रीसिंहतिलकसूरिए आ ‘परमेष्ठियन्त्रकल्प' प्रसन्न थयेला देवतानी भक्तिथी लख्यो छे // 78 // 15 MAGAR चक्रना। | चक्रनुं चक्रनां चक्रनो चक्रतुं नाम चक्रना * चक्रडलना वर्णों तत्त्व यंत्रनो स्थान दल | रंग तत्त्व देवी मंत्रबीज बीज आकार 12 मूलाधार गुदामध्य 4 रक्त वशषस | पृथ्वी / लँडाकिनी चतुष्कोण | ऐ 2 स्वाधिष्ठान लिंगमूल 6 अरुण बभम यरल जल | व | राकिनी चन्द्राकार | ऐ ही क्ली |20 3 मणिपूर नाभि |10| श्वेत ड ढ ण त थ द धनपफ | अग्नि लाकिनी त्रिकोण Mअनाहत . हृदय | 12 पीत कखगघ ङ च छ ज झञ वायु काकिनी षट्कोण टठ 5/ विशुद्ध श्वेत अआइई उ ऊ ऋऋ आकाश शाकिनी शून्यचक्र ललू ए ऐ ओ औ अंः (गोलाकार) 6 ललना घटिका | 20 | रक्त हाकिनी 7 आज्ञा, त्रिकोण, भूमध्य 3 | रक्त ह क्ष (१ळ) महातत्त्व याकिनी लिंगाकार / कोदंड, खेचरी ब्रह्मरन्ध्र, शीर्ष सोमकला,हंसनाद / ब्रह्मबिन्दु, सुषुम्णां सहस्रार 1000 श्वेत bhai रक्त 42 णे या मा * आ खानाओमा अपायेली माहिती ग्रंथांतर मुजब छ /