________________ 124 [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय मणिपूर्णे श्रीबीजं जपारुणं वर्ण(णे 1) दशकदिग्भ्यः / ईश्वरताणितवस्तूच्छ्यमिह वश्यं च लाभकरम् // 71 // भालान्तर्धेमध्ये त्रिकोणकोदण्डखेचरीत्याख्यम् / अस्योवं मध्ये वा माया-स्मरबीजयोरेकम् // 72 // आधारान्तरवाग्भवं कुण्डलिनीतन्तुबद्धवश्यशिरः। कृत्वाऽधःस्थितमरुणं ध्यातं बीजान्तरुत वश्यम् / / 73 // यदि वा भ्रूमध्यान्तः इवी बीजनिर्यदमृतवर्षभरम् / ध्यातं विषरोगहरं त्रिकोणके मूर्ध्नि पूर्ववत् स्वरम् / / 74 / / यदि वाकुण्डलिनीतन्तुधुतिसंभृतमूर्तीनि सर्वबीजानि / शान्त्यादि-संपदे स्युरित्येषो गुरुक्रमोऽस्माकम् // 75 // मणिपूरचक्रमां 'श्री' बीजनुं जपा कुसुमनी माफक अरुणवर्णतुं ध्यान दशे दिशाओमाथी 'ई' स्वर (अंकुश )थी खेंचायो छे वस्तुसमूह जेनो एवा वश्य (स्त्री के पुरुष) ने वश करे छे अने लाभ माटे थाय छे (?) // 71 // 15 भालनी वच्चे भ्रूमध्यमां रहेल आज्ञाचक्रनां त्रिकोण, कोदण्ड, अथवा खेचरी एवां नामो छे तेना ऊर्ध्वभागमां अथवा मध्यभागमा मायाबीज-'ही' अने स्मरबीज-क्ली'-ए बेमांथी एकनुं ध्यान कराय छे // 72 // आधारचक्रमां अरुणवर्ण 'ऐ' मां कुंडलिनी रूप तंतु वडे वश्यतुं शिर बंधायेल छे, एम चिंतवतुं अथवा वश्यने बीज नीचे अथवा बीजनी वच्चे चिंतववो; एथी वशीकरण थाय छे (?) // 73 // __ अथवा तो भूमध्यमां 'इवी' बीजमाथी झरता अमृतना वरसादथी भरपूर एवा ए बीजर्नु ध्यान विष अने रोगने हरनारं थाय छ / अथवा आज्ञाचक्रना उपरना चक्रोमां पूर्ववत् स्वरोनुं ध्यान करवु // 74 // ___ अथवा (ज्योतिर्मयी) कुंडलिनी तंतुनी ज्योतथी प्रकाशित वर्ण-देहवाळां अथवा कुंडलिनी तंतुनी कांतिमाथी प्राप्त थयो छे आकार जेमने एवां सघळा बीजाक्षरो शान्ति आदि (तुष्टि-पुष्टि )नी 25 संपत्ति माटे थाय छे–एवो अमारो गुरुकम-आम्नाय छे / 75 // 20 37 वर्णदेशक / 38 वामेयस्म म। ज्वी क्षी है। 41 °वर्षधरम् / 39 °भवकु / 40 °न्तः श्री मी बीज छ /