________________ विभाग] 123 परमेष्ठिविधायन्त्रकल्पः चतुष्टये क्रमात् सूर्याः त्रि-पट्-द्वयष्टदलावली। तदन्तर्नवबीजानि त्रिष्वादौ त्रिपुराऽथवा // 66 // नवचक्रान्तः क्रमशो वाग्भवमुख्यानि मन्त्रबीजानि / तत्राद्ये रविरोचिषि त्रिकोणमर्केन्दुनौडीभ्याम् // 67 // भगबीजमेतदृवं कुण्डलिनीतन्तुमात्रमभ्रकलम् / वाग्भवबीजं श्वेतं ध्यातं सरस्वतीसिद्धिः // 68 // अरुणमिदं वह्निपुरं ध्यातं मात्रां विनाऽपि वश्यकृते / किन्तु समात्रं यद्वा मायान्तः कामबीजमध्ये वा // 69 // ध्यातं सा(स्वा)धिष्ठाने षट्कोणे हाँ स्मैरबीजभू(यु)त[म्] / ईकाराङ्कशताणितशिरोऽम्बरस्त्रीक(स्त्रिकल ?)मिह वश्यम् // 70 // 10 रंग रातो तेम ज 9 सहस्रार (ब्रह्मबिंदु) चक्रनो रंग श्वेत छे / आदिनां पांच चक्रोमां अगाऊ जणाव्या मुजब पत्रो होय छे (एटले आधार 4, स्वाधिष्ठान 6, मणिपूर 10, अनाहत 12, विशुद्ध 16) ज्यारे बाकीनां चक्रोमां क्रमशः 12, 3, 6 अने 16 (एटले ललना 12, आज्ञा 3, ब्रह्म 6 अने सहस्रारमा 16 * ) होय छे / तेना अंतर्भाग (कर्णिका) मां ते दरेकमां एकेक एम नव बीजो होय छे अथवा आदिनां त्रण चक्रोमां 'त्रिपुरा' (देवताविशेष !) छे // 65-66 // - 15 - नवचक्रोमां क्रमशः वाग्भव–'ऐ' वगेरे मंत्रबीजो रहेलां छे, तेमां सूर्यकिरण जेवा मूलाधारचक्रमां सूर्य (पिंगला) अने चंद्र (इडा) नाडीद्वारा त्रिकोण थाय छे, ते भगबीज-'एँ' स्वरूप छे अने तेनी ऊपर कुंडलिनीना तंतु जेवी अने तेजे अभ्रकला-आकाश (मेघ) जेवी झांखी कला–मात्रारूप * यईने 'ऐ' बनावे छे। ते वाग्भवबीज-'ऐ' नुं श्वेतवर्णी ध्यान करतां सरस्वती देवी सिद्ध थाय छे // 67-68 // 20 आ वह्निपुर-अरुण वर्ण छे, तेनुं मात्रा विना पण ध्यान करवामां आवे तो ते वशीकरण माटे थाय छे, पण ज्यारे मात्रा सहित अथवा मायाबीज ही कारमा अथवा कामबीज क्ली कारमा एy (ऐकारनुं) ध्यान करवामां आवे तो विशेष वशीकरण माटे थाय छे / / 69 // .. (बीजी रीते-गाथा 69 ना अंतिम अर्धभागनो ज्यारे गाथा 70 साथे अन्वय करीए तो आ रीते अर्थ शके छे :-) 25 . पण ज्यारे स्वाधिष्ठान चक्रमां आ ऐनु मात्रा सहित अथवा हीकारमा अथवा क्लीकारमा अथवा षट्कोणमा ही अने क्ली नी अंदर ध्यान करवामां आवे तो ते विशेष वशीकरण माटे थाय छे / 'ई' कार (1) ने अंकुरारूपे चिंतववो। 'ई' काररूप अंकुशथी खेंचायुं छे मस्तकनुं वस्त्र जेनुं एवं वश्य (स्त्री अथवा पुरुष) वशीभूत थाय छे // 70 // * इतरमते हजार दल होय छे / 30 33 वदनान्तम। 34 निष्पादौ म। 35 नाडिभ्याम् / 36 स्व(स्म)रस्य बीजसुतः / /