________________ 122 सिंस्कृत नमस्कार स्वाध्याय आधाराख्यं स्वाधिष्ठानं मैणिपूर्णमनाहतम् / विशुद्धि-ललना-ज्ञा-ब्रह्म-सुषुम्णाख्यया नव // 61 // अम्बुधि-रस-दर्श-र्याः षोडैश-विर्शति-गुणास्तु-षोर्डंशकम् / देशशतदलमथ वाऽन्त्यं (वाच्यं ?) षट्कोणं मनसाऽक्षपदम् // 62 // दलसंख्या इह साधा ह-क्षान्ता मातृकाक्षरौंः पसु / चक्रेषु व्यस्तमिता देहमिदं भारतीयन्त्रम् // 63 // आधाराद्या विशुद्धथन्ताः पञ्चाङ्गास्तालुशक्तिभृत(तः१)। आज्ञा भ्रूमध्यतो भाले मैंनो ब्रह्मणि चन्द्रमाः // 64 // रक्तारुणं सितं पीतं सितं रक्तत्रयं सितम् / चक्रं वर्णा इतः प्राग्वदादौ पत्राणि पञ्चसु // 65 // कहे छे, 9 ऊर्ध्व भागमां (ब्रह्मबिन्दुचक्र) सुषुम्णाचक्र-एम नव चक्रो छ। मूलाधारथी ऊर्ध्व गणना करीए तो नव चक्रो याय, तेमां कंठ (विशुद्धचक्र) सुधी पांच चक्रो अने आज्ञाचक्र नामे छड़े चक्र गणाय // 60-61 // (ए प्रत्येक चक्र-कमलनां दल क्रमश:-) चार (मूलाधारना), छ (स्वाधिष्ठाननां), दश(मणिपूरना), 15बार (अनाहतना), सोळ (विशुद्धनां), वीश (ललनाना), त्रण (आज्ञानां), सोळ (ब्रह्मरंध्रनां) अने छेल्लां हजार पत्रो (ब्रह्मबिन्दुचक्रना) होय छे / * अथवा आ सहस्रार ते मन अने इन्द्रिय पदवाळु षट्कोण छे (?) // 62 // अहीं दलसंख्यामां 'अ' थी लईने 'ह' अने 'क्ष' सुधीना. मातृकाक्षरो छये चक्रोमां विभाजित छे; तेथी आ शरीर भारती–सरस्वतीना यंत्ररूप बनी जाय छे // 63 // आधारचक्रथी मांडीने विशुद्धचक्र सुधीनां (आधार-स्वाधिष्ठान-मणिपूर-अनाहत-विशुद्ध) चक्रो 20 शरीरनां पांच अंगो (अवयवो--गुदा-मध्य, लिंगमूल, नाभि, हृदय अने कंठ स्थाने रहेलां) छे। तालु स्थानीय (घंटिकास्थानीय) ललनाचक्र सरस्वतीनी वाक्शक्तिने' धारण करे छ। आज्ञाचक्र भालप्रदेशमां भूमध्यस्थाने छ / ए स्थानमां मन रहेढुं छे। ब्रह्म चक्रमां चन्द्रमा-परमात्मशक्तिनुं प्रतीक छे (!) // 64 // 1 आधारचक्रनो रंग रक्त, 2 स्वाधिष्ठानचक्रनो रंग अरुण,. 3 मणिपूरचक्रनो रंग श्वेत, 254 अनाहतचक्रनो रंग पीळो, 5 विशुद्धचक्रनो रंग श्वेत, 6-7-8 ललनाचक्र, आज्ञाचक्र अने ब्रह्मचक्रनो * 'षट्चक्रनिरूपण' वगेरे ग्रंथोमां आधारचक्र चार दलनु, स्वाधिष्ठानचक्र षड्दलनु, मणिपूरचक्र दश दलनु, अनाहत चक्र बार दलनु, विशुद्धचक्र सोळ दलनु, आज्ञाचक्र बे दलनु अने सहस्रारचक्र हजार दलनुं पद्म होय छे, एम जणावेलुं छे। तेमा छ चक्रो उपरांत बीजां चक्रो विशे जणाव्युं नथी / 1 शक्ति शब्दना अनेक अर्थों छे, तेमांथी नीचेना अर्थो अहीं लई शकाय तेम छे: शक्तिदेवी-गौरी, शब्दमा रहेल अर्थबोधकतारूप शक्ति, तंत्र प्रसिद्ध पीठाधिष्ठात्री देवता, मंत्रोत्साहरूप शक्ति, कवित्व शक्ति वगेरे। 31 शुद्धानां पञ्चातस्ता में 32 मतोस।