________________ विभाग] परमेष्ठिविद्यायन्त्रकल्पः 'श्रुतदेवता' शब्देन सरस्ती वाच्या "ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनि ! पापात्मक्षयकरि ! श्रुतज्ञानज्वालासहस्रज्वलिते ! मत्पापं हन हन दह दह क्षा क्षी क्षौ क्षः क्षीरधवले अमृतसंभवे ! + व हूँ हूँ स्वाहा // " गणभृद्भिर्जिनैरुक्तां तां विद्यां पापभक्षिणीम् / स्मरन्नष्टशतं नित्यं सर्वशास्त्राब्धिपारगः॥५७ // वाग्-माया-कमलाबीजं इवाँ श्री ततः स्फुर स्फुर / ॐ क्लीं क्ली ऐ वागीश्वरीं भगवतीमस्तु नमः // 58 // एनं सारस्वतं मन्त्रं विबुधश्चन्द्रपूजितम्। स्मरेत् सरस्वती देवी साक्षाद् ध्यातुर्वरप्रदा // 59 // अत्र विशेषः (कुण्डलिनीवर्णनविशेषः) गुदमध्य-लिङ्गमूले नाभौ हँदि कण्ठ-घण्टिका-भाले। मूर्धन्यूचे नवषट्कं (चक्रं ?) ठान्ताः पञ्च भाले(ल?) युताः // 60 // श्रुतदेवीथी अहीं सरस्वतीदेवी समजवी-(तेनो मंत्र आ प्रकारे छे) "ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनि ! पापात्मक्षयङ्करि! श्रुतज्ञानज्वालासहस्रप्रज्वलिते ! मत्पापं हन हन 15 दह दह क्षाँ क्षी यूँ क्षौ क्षः क्षीरधवले! अमृतसंभवे / व व हूँ हूँ स्वाहा // " .. जिनेश्वरो अने गणधरोए ए (उपर्युक्त) विद्याने 'पापभक्षिणी-' पापने खानारी कही है। एनुं हमेशा एक सो ने आठ वार स्मरण करनार सकल शास्त्रनो पारगामी बने छे // 57 // . वाग्-'ऐं' माया-'ही', कमलाबीजं-'श्री' 'झ्वाँ श्री' ते पछी 'स्फुर स्फुर ॐ क्लीं क्लीं ऐं वागीश्वरी भगवतीमस्तु नमः // 20 (मंत्रोद्धार-) “ऐ ही श्री इवाँ श्री स्फुर स्फुर ॐ क्लीं क्लीं ऐं वागीश्वरीं भगवतीमस्तु नमः // "58 // आ प्रकारे विद्वानो अगर पोताना गुरु विबुधचंद्र आचार्य पूजेला आ 'सारस्वत' मंत्रनुं स्मरण कर जोईए। एनुं ध्यान करनारने सरस्वती देवी प्रत्यक्षपणे वरदान आपे छे // 59 // (अहींथी विशेषविधि-कुण्डलिनीनो आम्नाय जणावे छे-) 1. गुदाना मध्यभाग पासे आधारचक्र, 2. लिंगमूळ पासे स्वाधिष्ठानचक्र, 3. नाभि पासे 25 मणिपूरचक्र, 4. हृदय पासे अनाहतचक्र, 5. कंठ पासे विशुद्धचक्र, 6. पडजीभ (घंटिका) पासे ललनाचक्र, 7. भाल पासे (बे भ्रमर वच्चे) आज्ञाचक्र, 8. मूर्धा पासे ब्रह्मरन्ध्रचक्र, जेने सोमचक्र पण 27 °करी / 28 श्रुतज्वाला अ। 29°बीजं झाँ झाँ श्रीम। 30°बुधयन्त्रपू /