________________ 120 संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय यदिवाऽष्टदले पझे गर्भ स्यात् प्रथमं पदं दिहूं। सिद्धादिचतुष्कं [च] विदिश्वन्यच्च चतुष्कम् // 52 // एतां नवपदी विद्यां प्रणवादि विना स्मरेत् / 'नमो अरिहंताणं' [च] यदिवान्तश्चतुर्दलीम् / / 53 // सिद्धादिकचतुष्कं च दिग्दलेषु मुनीन्दुभिः। अपराजितमन्त्रोऽयमुक्तः पापक्षयङ्करः॥५४॥ हृदि वा 'नमो सिद्धाणं' अन्तर्दलचतु:क्रमात् / पश्चवर्णमयो मन्त्रो ध्यातः कर्मक्षयङ्करः // 55 // 'श्रीमदृषभादि-वर्धमानान्तेभ्यो नमो'मयः। मन्त्रः स्मृतः सर्वसिद्धिकरोज तीर्थशब्दतः॥५६॥ अथवा, आठ पत्रवाळा कमलगर्भमां (कर्णिकामां) प्रथम पद (नमो अरिहंताणं) छे अने चार दिशाओमां सिद्ध आदि चतुष्क (नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं) छे अने चार विदिशाओमां बीजं चतुष्क (एसो पंचनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं अथवा ' णमो दंसणस्स' आदि 4 पद) छे-आ प्रकारे प्रणव वगेरे विनानी आ 15 नवपदीनुं स्मरण कर। अथवा तो, चार दलवाळा कमलमां वच्चे–कर्णिकामां 'नमो अरिहंताणं' अने चार दिशाओना पत्रोमां सिद्ध आदि चतुष्कनुं स्मरण क जोईए / ए रीते महामुनिओए आने 'पापक्षयंकर'पापनो क्षय करनार 'अपराजितमन्त्र' कह्यो छे // 52-54 // अथवा, हृदयमां चार दलवाळा कमलने कल्पीने क्रमशः 'नमो सिद्धाणं' एवा पांच वर्णवाळा मंत्रनुं ध्यान करतां कर्मनो क्षय थाय छे–'कर्मक्षयंकर' मंत्र बने छे // 55 // . 20. तीर्थंकरोना शब्दथी बनेला मंत्रने 'सर्वसिद्धिकर'-समग्र सिद्धिओने आपनारा मंत्रो कह्या छे, ते आ प्रकारे 1. "श्रीऋषभतीर्थङ्कराय नमः / " 2. “श्रीऋषभनाथाय नमः / श्रीअजितनाथाय नमः / श्रीसंभवनाथाय नमः / श्रीअभिनन्दननाथाय नमः / श्रीसुमतिनाथाय नमः / श्रीपद्मप्रभनाथाय नमः / श्रीसुपार्श्वनाथाय नमः / श्रीचन्द्रप्रभनाथाय नमः / 25 श्रीसुविधिनाथाय नमः। श्रीशीतलनाथाय नमः / श्री श्रेयांसनाथाय नमः / श्रीवासुपूज्यनाथाय नमः / श्रीविमलनाथाय नमः / श्रीअनन्तनाथाय नमः / श्रीधर्मनाथाय नमः / श्रीशान्तिनाथाय नमः / श्रीकुन्थुनाथाय नमः। श्रीअरनाथाय नमः / श्रीमल्लिनाथाय नमः / श्रीमुनिसुव्रतनाथाय नमः / श्रीनमिनाथाय नमः / श्रीनेमिनाथाय नमः / श्रीपार्श्वनाथाय नमः / श्रीवीरनाथाय नमः // " . ___3. "ॐ ह्री श्री ऋषभ-अजित-संभवाभिनन्दन-सुमति-पत्नप्रभ-सुपार्श्व-चन्द्रप्रभ-सुविधि-शीतल30 श्रेयांस-वासुपूज्य-विमलानन्त-धर्म-शान्ति-कुन्थ्वरमल्लि मुनिसुव्रत-नमि-नेमि-पार्श्व-वर्द्धमानेभ्यो नमः // " 56 // 26°दिच अप्रतावशुद्धः पाठः।