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________________ विमाग] 111 परमेष्ठिविधायन्त्रकल्पः गुरुपञ्चकनामाद्यमेकैकमक्षरं तथा।। नाभौ मूर्ध्नि मुंखे कण्ठे हदि स्मर क्रमान्मुने ! // 45 // 'अ'वर्ण नाभिपद्मान्तः 'सि' वर्ण तु शिरोऽम्बुजे। 'आँ' मुखाब्जे 'उ' कण्ठे 'सा' कारं हृदये स्मर // 46 // मन्त्राधीशः पूज्यैरुक्तोऽसौ किन्तु देहरक्षायै / शीर्ष-मुख-कण्ठ-हत्-पदक्रमेण 'अ सि आ उ साः' स्थाप्याः॥४७॥ प्रणवः पञ्चशून्याने 'अ सि आ उ सा नमः' / अस्याभ्यासादसौ सिद्धिं प्रयाति गतबन्धनः / / 48 // शाम्यन्ति जन्तवः क्षुद्रा व्यन्तरा ध्यानघातिनः / तद वक्ष्येऽष्टदिक्पत्रे गर्भे सूर्यमहः स्वकम् // 49 // 'ॐ नमो अरिहंताणं' क्रमात् पूर्वादिपत्रगम् / प्रत्याशमेकमेकाहः एकादशशती जपेत् // 50 // ध्यानान्तरायाः शाम्यन्ति मन्त्रस्यास्य प्रभावतः। कार्ये सप्रणवो ध्येयः सिद्धये प्रणवं विना // 51 // - हे मुनि ! पांचे गुरुओना नामना प्रथम एकेक वर्ण नाभि, मस्तक, मुख, कंठ अने हृदयमा 15 क्रमशः स्मरण कर // 45 // (एटले) नाभिकमलमा 'अ' वर्ण, मस्तकमा 'सि' वर्ण, मुखकमलमा 'आ' वर्ण, कंठमां 'उ' वर्ण अने हृदयमां 'सा' वर्णनुं स्मरण कर // 46 // - पूज्योए आ (अ सि आ उ सा)ने मंत्राधीश कह्यो छे। शरीरनुं रक्षण करवा माटे मस्तकमा 'अ', मुखमां 'सि', कंठमां 'आ', हृदयमा 'उ' अने चरणमा 'सा'-ए क्रमे वर्णोने स्थापन करवा // 47 // 20 प्रणव-'ॐ', पांच शून्य--'हाँ ही हूँ हो हः' नी आगळं 'अ सि आ उ सा नमः'-आ प्रकारना (मंत्रना) वारंवार जापथी साधक बंधनोमांथी छूटीने मोक्षमा जाय छ। (मंत्रोद्धार--) “ॐ ह्रा ही हूँ ही हू: अ सि आ उ सा नमः // " // 48 // ध्यानने विघ्न करनारा क्षुद्र जंतुओ अने व्यंतरो जेयी शांत थाय ते विधिने हुं कहुं छु आठ दिशारूप पत्रनी मध्य (कर्णिका)मां सूर्यना तेज स्वरूप पोताने स्थापन करवो अने 25 'ॐ नमो अरिहंताणं' (ए मंत्र)ने क्रमशः पूर्व आदि प्रत्येक दिशामां तेम ज विदिशामा स्थापन करवो अने तेनो प्रत्येक दिशामा एकेक दिवसे अगियारसो वार जाप करवो जोईए / आ मंत्रना प्रभावथी ध्यान करती वेळा आवता अंतरायो शमी जाय छे। (इहलौकिक) कार्य माटे (सकाम ध्यान कर, होय तो) प्रणव-'ॐ'पूर्वक ध्यान करवू अने सिद्धिने माटे (निष्काम ध्यान माटे) प्रणव-'ॐ' विना तेनुं ध्यान करवू // 49-51 // 23 'तथा' इति पाठो नास्ति अ प्रतौ। 24 कर्णे इ० अ प्रतौ न सम्यगाभाति / 25 'सा' मुखाम्बुजे 30 'आ'कण्ठे 'उ'कारं हृदये स्मर भां।
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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