________________ विभाग] परमेष्ठिविद्यायन्त्रकल्पः मघवाऽग्निर्यमो रक्षो वरुणो वायुदिक्पतिः / पूर्वादौ धनदेशानौ नागोऽधो विधिरूगः // 19 // . "अट्ठमहारिद्धीओ हिरि-सिरि-लच्छि-बुद्धि-कंतीओ। विजया जया जयंती वियरइ अपराजिया वि तहिं" // 20 // पूर्वादिक्रमतो दिक्षु एतद्गाथाहिरकतः। एकतः श्रुतदेवी तु पुस्तकाम्भोजशालिनी // 21 // एकतः शान्तिदेवी च करे स्वर्णकमण्डलुम् / सुधारसभृतं पद्माक्षसूत्राधपि बिभ्रती // 22 // राजत-स्वर्ण-रत्नप्राकारत्रितयं दिशेत् / चतुर स्फुरद्रत्नध्वज-तोरणराजितम् // 23 // भूमण्डलं ततो दिक्षु विदिक्षु [च] लकारवान् / यद् व्याप्यं(प्य) [मण्]डलं सार्द्ध वकारैः कलशाङ्कितम् // 24 // [इति यन्त्रलेखनम् / पूर्व आदि आठ दिशाओमां (क्रमशः) दिशाओना अधिपतिओ-१. मघवा (इन्द्र), 2. अग्नि, 3. यम, 4. रक्षः (नैर्ऋत), 5. वरुण, 6. वायु, 7. धनद (कुबेर), 8. ईशान-(आ आठ दिशाओमां 15 अने) नीचेना भागमा नाग तेमज ऊपरना भागमां विधि (ब्रह्मा)–ए प्रकारे नामो लखवां // 19 // .. पूर्व आदि दिशाओमा क्रमशः आठ महाऋद्धिओ लखवी-१. ही, 2. श्री, 3. धृति, 4. मति, 5. कीर्ति, 6. कांति, 7. बुद्धि अने 8. लक्ष्मी; तेम ज त्यां (पूर्व आदि दिशाओमां) 1. जया (पूर्व), 2. विजया (उत्तर), 3. जयन्ती (अजिता-पश्चिम) 4. अपराजिता (दक्षिण) लखवी // 20 // पूर्व आदि दिशाओना क्रमे ऊपरनी गाथाओनां चरणो क्रमशः मूकवा, एक तरफ पुस्तक तेम ज 20 कमळथी शोभती श्रुतदेवीनी आलेखना करवी. अने बीजी तरफ जेना एक हाथमां अमृतरसथी भरेलु सुवर्ण, कमण्डलु छे अने बीजा हाथमां पद्मना पारानी माला छे एवी शांतिदेवीने आलेखवी // 21-22 // ___(वलयाकृतिनी बहारनुं भूमण्डल) रजतमय, सुवर्णमय, अने रत्नमय त्रण गढवाळु रचवू अने तेमा जाज्वल्यमान रत्नवाळा ध्वजो अने तोरणोथी शोमतां एषां (प्रत्येक गढनां) चार द्वार बनाववां // 23 // एपछी भूमंडलनी चारे दिशाओ अने विदिशाओमां 'ल'नी आकृति दोरवी। कलशथी अलंकृत 25 एवा मंडलने 'व'कारो साथे आलेखq (2) // 24 // [आ प्रकारे यंत्रनुं आलेखन कर।] 14 °मियमोसा