________________ 114 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कर "ॐ नमोऽरिहो भगवओ अरिहंत-सिद्ध-आयरिय-। उवज्झाय-सव्वसंघ-धम्मतित्यपवयणस्स // 16 // ॐ नमो भगवईए सुयदेवयाए संतिदेवयाए / सव्वदेव-पवयणदेवयाणं दसहं दिसापालाणं / पंचण्डं लोगपालाणं ठः ठः स्वाहा // " विद्येयं वलयाकृत्या, लेख्या नवगर्जेप्रमा // 17-18 // अस्या वर्णाः श्लोकयुग्मं (ग्मेन) पञ्चविंशतिरक्षरा (पदानि)॥ (अहीं बीजा यंत्रनो अगर ए यंत्रनो बीजो प्रकार बतावे छे-) अथवा वच्चे एक 'अर्हन् 'ने राखीने (कमळनां चार पत्रोमां) सिद्ध वगेरे आगळ छ छ 10 तीर्थंकरो (सिद्ध जिनेश्वरोना समविभागे) स्थापवा (सिद्ध-ऋषभ, अजित, संभव, अमिनंदन, सुमति, पद्मप्रभ। आचार्य-सुपार्श्व, चंद्रप्रभ, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य / उपाध्याय-विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अर। साधु' मल्लि, (मुनि)सुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व, वीर। -आ प्रकारे स्थापना करावी।) अथवा वर्ण अनुसार आ क्रमथी स्थापवा15 (अर्हन्-चन्द्रप्रभ, सुविधि। सिद्ध-पद्मप्रभ, वासुपूज्य / आचार्य-ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति, सुपार्श्व, शीतल, श्रेयांस, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुंथु, अर, नमि, वीर / उपाध्याय-मल्लि, पार्श्व / साधु-सुव्रत, नेमि।)-आ प्रकारे अगाउ (सूरिमंत्र अने वर्धमानविद्या )मा जणाव्या मुजब स्थापना करवी॥१५॥ + (परमेष्ठिविद्या-पद अने वर्णसंख्यासहित--) 2-2 5-4 नमो अरिहो भगवओ भरिहंत 6-2 7-4 10-4 सिद्ध आयरिय उवज्झाय सन्वसंघ धम्मतित्थ 11-5 12-1 13-2 पवयणस्स नमो भगवईए सुयदेवयाए 17-4 18-8 19-3 20-5 संतिदेवयाए सव्वदेव पवयणदेवयाणं दिसापालाणं 21-3 22-5 24-1 25-2 पंचण्हं लोगपालाणं स्वाहा 30 -आ विद्या(परमेष्ठिविद्या)ने वलयाकृतिए लखवी अने तेनुं प्रमाण नेव्याशी वर्णोनु (89) ___थाय छे / / 16-18 // आ विद्याना वर्णो बे श्लोकमा (उपर गणाव्या मुजब) पच्चीश (25) अक्षरो अगर पदो छ। 13 णदेवाणं / + परमेष्ठिविद्या (गणिविद्या) माटे जुओ 'नमस्कार स्वाध्याय' (प्रा. वि.) पृ. 427 / . “प्रथम अंक पदसूचक अने द्वितीय अंक वर्णसूचक छ / 23-1