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________________ [57 - 12] श्रीसिंहतिलकसूरिसंहब्धः परमेष्ठिविद्यायन्त्रकल्पः श्रीवीरजिनं नत्वा वक्ष्ये श्रीविबुधचन्द्रपूज्यपदम् / गणिविद्यायुगपदतो यन्त्रं परमेष्ठिविद्यायाः // 1 // त्रिपाकारं क्रमशचतुरष्ट-द्वयष्टपत्रपमान्तः / किञ्जल्कर्पूज्यबीजं यन्त्रं लेख्यं सुरभिदलैः // 2 // मध्येऽई ऊर्ध्वादिषु सि' ओ उ सौ रेखिका दलचतुष्के / ऋषभोऽथ वर्द्धमानश्चन्द्राननो वॉरिषेणको दिक्षु // 3 // अष्टदलेषु क्रमशो युगादिनाथाय तन्नमोऽत्रैव / गोमुख-चक्रेश्वौ शस्य कान्तं जिनः सुरश्च सुरी // 4 // द्वथष्टदलेषु क्रमशः सुविधिजिनाय नम इत्यथ / त्रिदशदेवं श्रीवीरान्तमेवं तद् वच्मि नामानि // 5 // अनुवाद गणधरो अने देवेन्द्रोने पण पूज्य छे चरण जेमना एवा श्री जिनेश्वर भगवंतने नमस्कार करीने 15 गणिविद्यानी साथोसाथ अहींथी जेनां पदो गुरुदेव श्री विबुधचन्द्रसूरिने अत्यन्त पूज्य हता एवा 'परमेष्ठिविद्या 'ना यंत्र विशे वर्णन करीश // 1 // (यन्त्र रचना-) त्रण गढ(ना आकार)मां क्रमशः चार, आठ अने सोळ पत्रोवाळा कमळनी अंदर यंत्रना कमळनी कर्णिकामां पूज्यबीज (अर्ह ) मूकीने यंत्रने सुवासित द्रव्योथी आलेख, // 2 // 20 - मध्यमा 'डई' अने ऊर्ध्वादि चार दलोमा ‘सि, आ, उ, सा'नां रेखाचित्रो (आलेखवां ) अने चार दिशाओमा क्रमशः 'ऋषभ, वर्धमान, चन्द्रानन, वारिषेण' एवां नाम लखवां // 3 // (कमळनां) आठ पत्रोमां क्रमश:-'युगादिनाथाय नमः', 'गोमुखाय नमः', 'चक्रेश्वर्यै नमः' ए प्रकारे जिनेश्वर, (शासन) देव अने (शासन) देवीनां नामो श्रीचन्द्रप्रभ जिनेश्वर सुधी लखवां, (कमळनां) सोळ पत्रोमां 'सुविधिजिनाय (नाथाय ) नमः 'थी लईने देवाधिदेव एवा श्रीवीर 25 भगवान सुधीनां नामो देव अने देवी साथेनां आलेखवां / ते नामो आ प्रकारे जणाद् छु // 4-5 // _ 1०द्यायाम झ। 2 वप्राकारं झ। 3 पूज्यं नी० झ। 4 जिन-सुराश्च झ।
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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