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________________ 106 [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय आधे हान्तं शब्दब्रह्मोवा॑धो 'र'तस्त्रिरत्नयुतम् / / चन्द्रकला सिद्धिपदं बिन्दुनिभोऽनाहतः सोऽर्हन् // 447 // 51 // षोडैश चतुरधिविंशतिरष्टौ नाभौ दलानि हृदि" मूर्ध्नि। आद्यं हान्तं वर्णाः शरदिन्दुकला-नभप्रभवाः // 448 // 52 // . नादस्त्वात्मोधिो रेफाजिनरत्नयुक्त इत्यहम् / दृश्योऽन्तर्ब्रह्मानं नाभ्यन्तः शक्तिकुण्डलिनी // 449 // 53 // इति सर्ववर्णमूर्ति अर्हन्तं सर्वमेरुगतमन्तः। ध्यायन् सूरिः सकलागमार्थवक्ता गतभ्रान्तिः // 450 // 54 // 5 (अई-) 10 अर्ह मां अ अने ह् (अथी मांडीने ह् सुधीनी मातृकारूप) शब्दब्रह्मना सूचक छे, रेफरत्नत्रितयने . बतावे छे, चन्द्रकला (1) ते सिद्धिपद छे अने बिंदुसदृश जे अनाहत (नाद) छे ते अरिहंत छे // 447 // 51 // 'अ' थी 'ह' सुधीना (49) वर्णो छ। तेमांथी 'अ' थी 'अ' सुधीना सोळ स्वरो नामिकमल (मणिपूरचक्र)नां सोळ दलोमां, 'क्' थी 'भ्' सुधीना चोवीश व्यञ्जनो हृदयकमल(अनाहतचक्र)नां चोवीश दलोमां अने 'य' थी 'ह' सुधीना आठ व्यञ्जनो ललाटकमल(आज्ञाचक्र) 15 नां आठ दलोमां-ए प्रकारे 48 वर्णो, शरद ऋतुना चन्द्रसदृश कला () अने बिन्दुथी युक्त चिंतवा / कला (वक्ररेखा) बिंदु अने नाद (सरल रेखा) नी संयोजनाथी मातृकाना व उत्पन्न थाय छ। (ते 'म्' सिवायना 'अ' थी 'ह' सुधीना 48 वर्णो थाय; तेमना ऊपर जे कला अने बिन्दुरूपे नाद छे ते 'म्' छ। 'म्' ने हृदयकमलनी वच्चे चिंतववो / आ प्रमाणे नाभिकमलनो पहेलो वर्ण 'अ,' ललाटकमलनो छेल्लो वर्ण 'ह' अने हृदयकमलनो वचलो वर्ण 'म्' मळीने 'अर्ह' थाय।) अहं ते 20 स्वात्मा छे / उपरनो अने नीचेनो 'र'कार श्रीजिनेश्वर भगवंतना रत्नत्रयनो सूचक छे। तेनाथी सहित थतां स्वात्मा-अर्ह-परमात्मा बने छ / 'अहूं' ने ब्रह्माज(ब्रह्मरंध्र)मां चिंतववो अने नाभिकमलनी मध्यमां कुंडलिनी शक्ति चिंतववी // 448-449 // 52-53 // ए रीते 'अहूं' ए अरिहंतनी साक्षात् सर्ववर्णमय मूर्ति छ। ए अहून संपूर्ण मेरुदंडमां (मेरुदंडगतसुषुम्णा नाडीमां) ध्यान करनार सूरि भ्रांतिरहित थईने सर्व आगमोना अर्थना प्रवक्ता बने छे // 450 // 54 // 25 1. सरखावो: आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं व्याप्य यत् स्थितम् / अग्निज्वालासमं नाद-बिन्दु-रेखासमन्वितम् // 1 // अग्निज्वालासमाक्रान्तं मनोमलविशोधकम् / देदीप्यमानं हृत्पने तत्पदं नौमि निर्मलम् // 2 // -'ऋषिमण्डलस्तोत्र' 2. सरखावो योगशास्त्र, प्रकाश 8, श्लो. नं. 18-22 नी व्याख्या। 3. सरखावो- , , , लो. 2-4 / . " " " " लो.८॥
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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