________________ विभाग] श्रीमन्त्रराजरहस्यान्तर्गतार्हदादि-पञ्चपरमेष्ठिस्वरूपसंदर्भः अर्हन् भूमिर्नभः सिद्धास्तेजः सूरिः परे पयः / वायुः साधुरतो मायाबीजान्तस्तत्त्वपञ्चकम् // 433 // 37 // पृथ्वी धर्मस्य पदं वारि नभश्चापि शुक्लबीजमिह / तैजसमार्तध्यानं मरुत् तथा रौद्रवीजं स्यात् // 434 // 38 // चन्द्र-कुजावर्हन्तः सिद्धाश्च बुधो बृहस्पतिः सरिः / शुक्रो वाचक एवं मुनिरक-शनीग्रहास्तत्र // 435 // 39 // नादोऽहन्नेतदधः शून्यं व्योमश्रिता ग्रहाः सप्त / इति नादाहद्ध्यानात् सर्वग्रहभूतशान्तिरिह // 436 // 40 // अर्हत-सिद्धाचार्योपाध्याय-मुनीन्द्रसंस्थितास्तिथयः। नन्दाद्याः पञ्चामूः क्रमशः शान्तिकं प्राग्वत् // 437 // 41 // 10 मायाबीज-हीकारमा तत्त्वपंचक तथा परमेष्ठिपंचकनो मेळ आ प्रमाणे छे-अर्हन् भूमिरूपे, सिद्ध आकाशरूपे, आचार्य अग्निरूपे, उपाध्याय जलरूपे अने साधु वायुरूपे छे' // 433 // 37 // .. अहीं (ध्याननी दृष्टिए) धर्मध्यान- पद पृथ्वी छे, शुक्लध्यान- बीज जल तथा आकाश छे, . आर्तध्याननुं पद अग्नि छे अने रौद्रध्यान- बीज मरुत् (पवन ) छे // 434 // 38 // . चंद्र अने मंगल( ना प्रहचार)नी शांति माटे अरिहंतना, बुध माटे सिद्धना, गुरु माटे 15 . आचार्यना, शुक्र माटे उपाध्यायना अने रवि तेमज शनि माटे मुनिनां पदोनी उपासना छे // 435 // 39 // नाद 'A'ए अरिहंत छे, नादनी नीचे शून्य 'A' ते आकाश छे, अने आकाशने आश्रयीने सात ग्रहो रहेला छ। ए रीते नादरूप अरिहंतना ध्यानथी सकल ग्रहो तथा भूतो अंगेनी शांति थाय छे // 436 // 40 // . . . तिथिओना पांच विभागो छे:-नंदा (1, 6, 11); भद्रा (2, 7, 12), जया (3, 8,20 13), रिक्ता (4, 9, 14) अने पूर्णा (5, 10, 15) / शांतिकर्म माटे अर्हत् , सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने मुनिपदोमां ते ते तिथिओनुं अनुक्रमे ध्यान करवू. // 437 // 41 // 1. सरखावोः-महिमंडलमरहंता गयणं सिद्धा य सूरिणो जलणो / वरसं वरमुवज्झाया पवणो मुणिणो हरंतु दुई // 6 // -न. स्वा. (प्रा. वि.) पृ. 262 25 2. सरखावो : ससिमंगल अरिहंता बुहो य सिद्धा य सुरगुरू सूरी। सुक्को उवज्झाय पुणो साहू मंदो सुहं माणू // 18 // -न. स्वा. (प्रा. वि.) पृ. 265 3. सरखावो: नंदा तिहि अरिहंता भद्दा सिद्धा य सूरिणो य जया। तिहि रित्ता उवज्झाया पुण्णा साहू सुहं दितु // 17 // -न. स्वा. (प्रा. वि.) पृ. 265 30